ऐसा कैसा जीवन जीना चाह रहे हैं हम,
बीमारियों को रोज बुला बसा रहे हैं हम !
प्लास्टिक में गर्म पेय है यक़ीनन जानलेवा,
चाय प्लास्टिक सने कप में पिला रहे हम !!
शादी गृहस्थ जीवन बसाने अहम रिवाज़ है,
सही उम्र में शादी सफल प्रजनन का राज है !
उम्रदराजी की शादियाँ टिकती ही नहीं अक्सर,
बिनशादी अंतरंगता सामाजिकता का परिहास है !!
बेलगाम आवारा कुत्तों का गलियों में राज है,
दुष्ट, डकैत, झूठे, व्यभिचारी, सत्ता में आज है !
जनमताधिकार से भी पारदर्शिता हुई अपहृत,
लोकतंत्र के हर खंबे में भ्रष्टाचार ही रिवाज़ है !!
वैश्विक तापमान दिन दिन बढ़ रहा,
पर्यावरण ह्रास करने से कोई न डर रहा !
वृक्षों को लगाने में कुछ नहीं जाता यारों,
तंत्र वृक्ष काटकर कैसा विकास कर रहा !!
हे राम, हे कृष्ण !
ऐसे कैसे मनेगा जनहित का जश्न !!-
I carry my stainless steel drinking water bottle from h... read more
लोगों को पहचानने का हुनर सीख लो,
फ़िर ये खेल कोई खेल ही नहीं पायेगा !
कलयुग के दौर में हरेक की ज़िंदगी में,
ये हुनर बारम्बार काम आयेगा !!-
जुड़े रहने के संस्कारों की,
पाश्चात्य पाशविकता ने कर दी है होली !
कल जो जिसके संग थी,
उसे छोड़, आज किसी और के संग हो ली !!-
समाज सेवा में भी राजनीति की घुसपैठ नजर आती है !
जब समाज सेवियों द्वारा जन से राजनीति की जाती है !!
कई समाजसेवी अधिकारियों को अपमानित करते हैं !
उन्हें जनता के नौकर कह सरेआम संबोधित करते है !!
जनतंत्र में जनता मालिक है परंतु सिर्फ़ मतदान के लिये !
मतदान से उसने अपने अधिकार जनप्रतिनिधियों को दिये !!
अधिकारियों ने भी प्रक्रिया से परीक्षा दे ओहदा पाया है !
उनमें बुद्धिमत्ता सर्वाधिक है ये हम सबको दिखाया है !!
उन्हें अपमानित करने का किसी को अधिकार नहीं है !
वो भी तो हमारे जैसे देश के मालिक ही है !!
नेताओं ने भी हमारा मत लेकर हमारी जिम्मेदारी ली है !
यदि वो गलत करे तो उनसे सवाल पूछना सही है !!
नेताओं अधिकारियों को अपमानित करने की प्रवृत्ति गलत है !
समाज सेवियों की इसके विपरित सोच में ही गफलत है !!-
हादसों के चक्रव्यूह में घिरे जा रहे हम !
विमान और हेलिकॉप्टर का हादसा,
इंद्रायणी पर ब्रिटिश कालीन पुल ढहने का हादसा,
करोड़ो की लागत से बने नए पुल के ढहने का हादसा,
गोवा में नाव डूब जाने का हादसा,
हर दिन हर पल जानें गंवा रहे हम !!
हे राम...-
शिक्षा के नाम पे लूट खसोट जारी है !
कम्प्यूटर युग में भी, बस्ते भारी हैं !!
बड़ों को ही नहीं बच्चों को भी सताया जा रहा !
संसार दिशाहीन सोच से सुख घटा दुःख बढ़ा रहा !!
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इंसानी जिंदगी बक्शी गयी है
जग संचलन के लिए !
इसीलिये सारे इल्म सारे गुण
इंसानों में ही भर दिये !!
ख़ुद ही की जिंदगी तो
जानवर भी जी लिया करते हैं !
हम स्वार्थ में गुजार दे तो,
प्रभु अपेक्षा पे खरे न उतरते हैं !!-
परवाह ही नहीं किसी को, जनहित की सोच की !
विज्ञापनों में आज-कल, गुमराही की होड़ लगी !!
नामचीनों ने भी लालच ही ओढ़ बिछाया है !
हर क्षेत्र के नामचीन ने जुए का गुण गाया है !!
नशे के विज्ञापनों की परोक्ष स्वरूप में भरमार है !
युवा पीढ़ी का हर पल हर दिन उजड़ा संस्कार है !!
फ़ोन पर दगाबाजी से बचने की हिदायतें जारी है !
फ़िर भी बैंकों के अनचाहे फ़ोन, बढ़ती महामारी है !!
रोज़गार का रोड़मैप, किसी पक्ष के पास नहीं !
पक्ष विपक्ष सबने कटोरे में, देने की बात कही !!
सरकारी मुलाजिमों का वेतन कई गुना बढ़ा दिया !
इसकी आपूर्ति के लिये शिक्षण पे भी 'कर' लगा दिया !!
इनके चहीते बाबाभोपे अरबों 'कर' मुक्त जमा कर रहे !
लुटेरू अस्पतालों के घर भी, करमुक्त लूट से भर रहे !!
राजनीति की ही ख़बरें, दिन रात सुनाई देती है !
मीडिया जमात भी जनहित से मुँह फेरे रहती है !!
देश की ही नहीं कमोबेश, दुनियां की हालत यही !
घरानों के इशारों पे राजनीति, इतरा के नाच रही !!
क्रांतियां जो भी हुई, उनके बलिदानों को भुला दिया !
व्यापारजगत ने दुनियां का सबकुछ ही हथिया लिया !!-
ना नदी साफ़ रखते, ना नाले साफ़ करते !
सारे अग्रज अब सिर्फ़ वसूली को मचलते !!
( चित्र सौजन्य: सकाल पीसीएमसी टुडे )-
जीत हाथ से फ़िसल गई, लालमुहें की हिदायत पर !
कछु हासिल न होना उसे, नापाक पे ये इनायत कर !!
क्यूं मानी हमने हिदायत, जब हम थे जीत के मुहाने पर !
नापाक इरादों पे रोक की, कशिश रह गई किनारे पर !!
शोभत न हिदायत उनकी, जो हथियार बेचते जाते हैं !
युद्ध से है परहेज़ उन्हें गर, तो हथियार क्यूँ बनाते है ??
जग विनाशक परमाणु को, नष्ट करे मिल जग सारा !
ज़खीरे पे जो बैठे, उनकी सोच पे हक, न है हमारा !!
'नूरा' निकट परमाणु भंडारण की ख़बरें चर्चित है !
इसी आड़ में, आका ने हिदायत दी, ये वर्णित है !!
आका बताये जग को स्पष्ट, परमाणु क्यूँ जरूरी है ?
गर जरूरी नहीं तो, नष्ट न करन की क्या मजबूरी है !!
विरोधाभासी दोगलापन, सिकंदरी फ़ितरत नहीं !
जगमसीहा बन सके, ऐसी हरगिज़ हैसियत नहीं !!
बिल्ली बंदर की कहानी बचपन से सबने पढ़ रक्खी है !
आका के बंदर बन जाने से, बिल्लियों की हानि ही है !!
भला हो जग मिल बैठ के सारे मसले सुलझाले !
जो न समझे ये बात, सब मिल के उसे समझाले !!
आतंकवाद सभ्य समाज को, फूटी आंख नहीं सुहाता !
बेवजह निर्दोष जानें जाना, सभ्यता पर कलंक लगाता !!
बापू ने अंहिसा का सबक सबको खूब सिखाया है !
जग पूजता है बापू को, पर सबक सीख न पाया है !!-