उनसे कह दो कफ़न खरीद कर रखें
मर जाएंगे हम भी चैन से
शर्त ये है कि जहर वो पिला दें-
होते नहीं लिबास भी मयस्सर जिन्हें जीते जी
वो भी चाहते हैं कफ़न नया बाद मरने के।।-
नांव है मझधार में मांझी का पता नहीं
इश्क़ के आगोश में वो कफ़न सजा बैठा
रूह बिछड़ गई तन हल्का हो गया
पूछे तो बस इतना कह देना
सर्द रातों में वो मछलियों का सौक़ीन था
अश्क...-
कफ़न बढ़ा
तो किस लिए
नज़र तू डबडबा गई?
सिंगार क्यों सहम गया?
बहार क्यों लजा गई?
न जन्म कुछ,
न मृत्यु कुछ,
बस इतनी सिर्फ़ बात है
किसी की आँख खुल गई,
किसी को नींद आ गई।-
तुम ज़िस्म भी आकर नोच लेना मेरी मौत पर,
मेरे जेब मे तुम्हे बस तिरंगे का कफ़न मिलेगा।-
मुझसे नाराज न हो कही भी खुद को रख लूंगा,
तरसोगे एक दिन जब कफ़न से खुद को ढक लूंगा।-
आज फिर निराश है, परेशान है, ये मन मेरा।
ढकने के इंतजार में, यूँ ठिठुर रहा ये तन मेरा।
जिंदगी चीखती है, तड़पती है मेरे 'मय्यत' पर,
देख लेना आकर तू भी, फटा हुआ कफ़न मेरा।-
शायद, खुद का क़फ़न ढूंढ़ने निकली थी
शायद, इसीलिए तुमसे मोहब्बत हो गई-