खो गए हम तुझ में इस कदर
जैसे मानो,
समुंदर में एक बारिश की बूंद का खोना।।-
एहसास तो हो गया होगा
न हुआ हो तो
ज़रा पूछना इन हवाओं से
आज कौन गुज़रा हैं तेरे शहर से...-
मैं यूँ ही खामोश हो चली थी
पर तेरी दरिन्दगी नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हैं।
ऐ 'दुनिया' मैंने तुझे कई मौके दिये सुधर जाने के
फ़िर भी तुम रिस रहे जख्मों को ।
माँ-बेटी और बहन यहां नहीं रहती हैं " सुरक्षित "
रोज़ शिकार बनते हैं इन दरिन्दो के हाँथो,
फ़िर भी है ये मूक दर्शक बने।
यह उस समाज की ही बात है,
जिसमें बढ़ रही हैं "हैवानियत"
फ़िर भी इसी समाज को 'इंसान' ख़ुद से भीे पहले रखता हैं।
चन्द शैतानों के हाथों रोज इंसानियत मर रही हैं,
रोक लो इन्हें अब भी यह समय विशेष हैं,
" चण्डी " का जागृत होकर समर में आना शेष हैं ।।
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शायद, खुद का क़फ़न ढूंढ़ने निकली थी
शायद, इसीलिए तुमसे मोहब्बत हो गई-
स्त्री ही क्यों ?????
क्यों, सीता की तरह अग्नि परीक्षा देनी पड़ती हैं
क्यों, राधा की तरह अपने प्रेम का त्याग करना पड़ता हैं
क्यों, द्रौपती की तरह भरी सभा में अपमानित किया जाता हैं
क्यों, देवकी की तरह बार-बार मातृत्व की हत्या की जाती हैं
क्यों, मीरा की तरह हमेशा धैर्य रखना होता हैं
क्यों, सत्ती की तरह बलिदान देना पड़ता हैं
क्यों, कुंती की तरह अपने संतान(कर्ण) का परित्याग करना पड़ता हैं
क्यों, अहिल्या की तरह बिना अपराध के दण्ड भुगतान पड़ता हैं
क्यों, हर वक़्त अपने अस्तित्व का प्रामाण देना पड़ता हैं
आखिर, स्त्री ही क्यों ??-
" हिंदी "
हिंदी केवल भाषा नहीं है यह वह जज़्बात हैं ।
जिसमें मैंने अपने पहले जज़्बात को बयां किया वह हैं " माँ " ।
जिसने मुझे ज़िंदगी भर एक-दूसरे से जोड़े रखा वह हैं "प्रेम"।
जिसने मेरे लक्ष्य को एक सफ़र प्रदान किया वह हैं "गुरु"।
जिसने मेरे ज़िन्दगी के सफ़र को आसान बना दिया वह हैं "हिंदी"।।-
अरे ज़नाब,
वह मंज़िल तक कैसे पहुँचा हैं अगर जानना हैं,
तो उसके पैरों में पड़े छालों पर गौर फरमाइए ।।-
khud pr kaam krna hai abhi...
khud ko kaabil banana hai abhi...
dheere-dheere hi shi pr safar ko pura krna hai abhi...
kyuki manzil tk pahunchna hai abhi...-
तुम में खो जाने का मन करता हैं।
तुम से ही प्रीत, तुम से ही बैर,
फ़िर भी तुम्हारे रंग में, रंग जाने को मन करता हैं ।।-
कोई रिश्ता या चीज़ टूटने के बाद जोड़ा जाए तो
वह बहुत सुंदर हो जाती हैं या तो वह पहले जैसा भी नहीं रहता-