तेरी इबादत में मेरे ये मासूम अल्फाज़ है
बेज़ुबान हुँ मैं और मुझमें तेरी आवाज है-
क्या हुआ??
क्या हुआ जब कोई साथ नही है,
तू खुद अपना साथी बन।
कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं,
याद रख,जीता वही जो डरा नहीं।💐💐
होकर मायूस न तू बैठ,
सूरज की तरह चमकना तुझे।
अपनी तकदीर बदल ,
फिर दूसरों की बदलनी है तुझे।
अपनी लकीरों को मत देख,
इन लकीरों से आगे जाना है तुझे।💐💐
मिलेगी कदम-कदम पर मुश्किल,
पर हौसलें टूटने मत देना।
गिर -गिर कर भी आगे बढ़ना,
पर माँ बाप का सिर झुकने मत देना।
देखना एक दिन....
मिलेगा तुझे वो सब,
जो तूने चाहा है।
वक़्त से लड़कर,
अपनी तक़दीर बदलनी है तुझे।💐💐
अपने हौसलों के भरोसे उड़,
हवाओं के सहारे तो पतंग उड़ा करती है।
होगी एक दिन चमक तेरी आँखों में,
जब मंजिल तेरे क़दम चूमेगी..!!!💐💐
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एक रात में रद्दी,
अखबार हो क्या?
खून के प्यासे
तलवार हो क्या?
करते हो कविता
बेकार हो क्या?
खामोशी से सुनते
दीवार हो क्या?
डरते हो खुद से
गद्दार हो क्या?
लौटाया सबने
पुरस्कार हो क्या?
सर पर हो चढ़ते
बुखार हो क्या?
बढ़ते ही जाते
उधार हो क्या?
रुलाते हो सबको
प्यार हो क्या?
जीत की बधाई
हार हो क्या?
सबकी हैं नजरें
इश्तहार हो क्या?-
सुनो ,
यह तुम मुझे अपने ख्यालों में उलझा कर कहां निकल जाते हो,कभी बता के तो देखो।
सताने के नित नए-नए बहाने कहां से ढूंढ लाते हो ।कभी प्यार जता के तो देखो
क्यों लगता है तुम्हें कि मैं आम औरतो सी ही हूं ,
कभी मन की गीली मिट्टी पर अरमानों के महल बना कर तो देखो
दिल में सौ अरमान होंठ सिले और आंखें नम,
कभी मिले फुर्सत जो मेरी तरह जिंदगी जी कर तो देखो ।
भूल कर अपना वजूद ढल गई तेरे रंग रूप मे ,
कभी यू ही बस एक रोज के लिए, मेरे मोहब्बत मे अपना वजूद भूला कर तो देखो।-
क्या खूब गलतफहमी लगा रखी है जनाब........
किसी के चले जाने से दुनिया नहीं रुका करती........-
जब खुद पर बीतती है तो
सच लगता है
और दूसरों पर बीतती है तो
ड्रामा लगता है....-
क्या हुआ, अगर जो तुझे ढूंढते, मैं रूठ जाऊँ
लाखो सवाल हैं,जबाब समेटते,खुद टूट जाऊँ।।
(Read in Caption)
👇-
कभी रेगिस्तान में समंदर देखा है क्या
उठती लहरों का मंज़र देखा है क्या
जिस से जूझते हो हर रोज आईने में वेबजह
उस शख्श को महोब्बत बना के देखा है क्या
बुझती हुई उम्मीद फिर लगेगी चमकने
खुद के अंदर झांक के देखा है क्या
आंखों के सहर धुँधलाहत मिट जाएगी एक झपक में
वेवजह होठों से मुस्कुरा के देखा है क्या
ख़ुद का साया भी लगेगा फड़फड़ाने
अपने भीतर उमड़ता तूफ़ान देखा है क्या
अंधेरो में दिखने लगेगा उजला सा आकाश
ख़ुद के अंदर उगता सूरज देखा है क्या
आते जाते रहेंगे ज़हन में ख़्वाब
खुद को एक फैसला सुना के देखा है क्या ?-
तुम मर्द बहुत इतराते हो कि ये दुनियां तुम चलते हो,
जा कर बैठना कभी मां के अंजुमन में
सारी दुनियां तुम आंचल में पाओगे।
और बहुत घमंड रखते हो जो अपनी बाजूओ के बल पर,
जब नई सृजन की बात आएगी
उस दर्द के आगे खुद को कमजोर पाओगे।।-