था तो था
मगर भुला दिया उसने
भर दिया मुझको खुद से
और बहुत दूर ले गया मुझे बीते कल से
अब तुम गम नही वस बीती बात बन चुके हो।
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क्यूं उलझे हो अभी तक
मौत आकर खड़ी हो जायेगी
तुम एक पल भी मांगोगे वो दे नही पाएगी
तुम्हारा कुछ नहीं रह जाएगा
जो खोया जो पाया सब मिट जाएगा
तुम जी कहां रहे हो तुम शिकायत कर रहे हो
ध्यान रखना
जिंदगी तुम्हारी सांस तक टिकी है।
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तन्हाई इंसान को खत्म कर देती है
बिमारी है बहुत बडी,
हम इतने कमजोर नहीं हैं
कि किसी की वजह से प्यार ही न करें,
छोटी बात है ये
किसी की जहालत कि सजा हम खुद को क्यों दें
किसी को रद करना
झूठ बोलना, धोखा देना
मतलब उसके साथ ज्यात्ति करना
ये बड़ी गलत बात है
बड़ी छोटी बात है।
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वही शाम वही सुबह
मेरी जगह मैं तुम्हारी जगह तुम
एक लंबा सफर और खाली से हम
पर ये खाली होना बिल्कुल बुरा नहीं है
न सफर का और न ही तुम्हारा
क्योंकि यही पसंदीदा सफर है ।
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मुझे खो जाना था अपनी बनाई दुनिया में तुम्हारे साथ
और बो शख़्स जिसे मैंने बनाया था तुम्हें वो हो जाना था
पहला सपर्श आँखों का होना था और शव्दों ने भी साथ देना था
सांसो में सांस का घुलना था और चुप हो जाना था
उस स्पर्श में तर्क वितर्क की मृत्यु हो जानि थी
और निश्चित ही नया जन्म हो जाना था ।
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मुझे मिट्टी को संवारना है ,अपने हाथों से आकार देना है, मनचाही आकृति में उकेरना है, भिगोकर प्रकृति को बदलना है , धूप में सुखा कर बारिश में सींचना है , फ़िर बापिस उसे मिट्टी करना है , " मैं चाहूं कि कुजागर तू मुझे फ़िर से बना मेरे अंतरतम की मिट्टी को भीगा " .....
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श्रेस्टा की रचना पूर्ण जीवंत हैं
यहां कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
केवल पूर्ण विकसित जीवन है
वास्तविकता से परे का कोई निर्माण नहीं
यह रचना अंत से परे है
बूंद आकार लेते ही ,अस्तित्व भी खो देती है
यहां शोर नहीं प्रकृति का संगीत है
दृश्य आत्म , भोर है
स्थिरता का समयकाल नहीं
आवाज है शव्द नहीं
कोई भेद कोई शंका नहीं
पूर्ण क्षमता से विकसित जीवन
परे है हर भ्रम से
हर रूप में स्विकार्य है
यहां केवल जीवन है
जीवन जो पूर्ण विकसित है ।
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