प्रेम सर्वव्यापी है, उसका कोई कोण नहीं
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हल्ली
काय बोलतोय
या पेक्षा कोण
बोलतोय याकडे
लोकांचे जास्त
लक्ष असते.
😊😊-
समकोणी सम्बन्ध है, षटकोणी अभिमान|
लघुकोणी वादन करें, दृष्टिकोण अज्ञान||-
चलो आज 'मन' को देते हैं कोई गणितीय आकार ,
वृत्ताकार ,त्रिकोणाकार ,आयताकार या वर्गाकार।
उसकी परिधि से ही उसका विस्तार मापते हैं ।
विस्तार से उसके मनोभावों का बदलाव भांपते हैं।
वृत्ताकार 'मन' चक्रीय चाल चल कर वहीं रुकता है।
त्रिकोणाकार 'मन' की त्री-कोनों से प्रतिबद्धता है ।
आयताकार 'मन' में चौतरफा मोड़ की समरूपता है।
वर्गाकार 'मन' में बराबरी के ठहराव की सुगमता है।
ये कोने 'मन' के विचारों को बदलने के वो पड़ाव हैं
जहां ख़ुद को ग़लत से सही बनाये जाने के चुनाव हैं।
एक राह पर चलते किसी मोड़ पर ये अहसास होना
कि हम गलत हैं अब और नहीं इस गलती को ढोना।
इस अनुसार तो मन को षटकोण सरीखा होना चाहिए।
हर मोड़ पर स्व-आकंलन करने का सलीक़ा होना चाहिए।
जया सिंह 🌺
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झूठे हैं रिश्ते सारे मतलब भरे नाते
कौन किसका हुआ याहा
कलयुगी रावण है सारे-
कसं सांगू तुला कोण आहेस तू
ढगाआड दडलेली चंद्रकोर आहेस तू
नको विचारू मला कोण आहेस तू
मनावर फिरणारं मोरपीस आहेस तू
कधी कळणार तुला कोण आहेस तू
शब्दात दडलेल मौन आहेस तू
एकदा च सांग मला कोण आहे मी
व्यक्त कर एकदाच कोण आहेस तू....
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जसे लिहिने एक कला आहे अगदी तसच वाचन ही सुद्धा एक कलाच आहे...
आणि आपण सर्वच कलाकार आहोत...
नाही का❓
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