न चंदा तोड़ सकता हूँ न तारे तोड़ सकता हूँ
समन्दर पी नहीं सकता मगर मुँह मोड़ सकता हूँ ।
फिकर मेरी न करना तुम जवाबों को अगर समझे
हमारे वश रहेगा जो वही मैं जोड़ सकता हूँ ।
कहो कुछ भी नहीं ऐसा जिसे मैं कर नहीं सकता
तुम्हें अच्छा नहीं लगता तुम्हें मैं छोड़ सकता हूँ ।
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कैसे मैं सावन लिख डालूं
पतझड़ को लिख दूं हरियाली,
माँ के नामों पर पेड़ लगा
सौंपू कातिल है वनमाली।
शेष रहे वन-उपवन जग में
बातों का मात्र सुलेख रहा,
भीलों ने कब जंगल बेचा
कटते जंगल मैं देख रहा।
कैसे मैं कह दूं वन-देवी से
वन-फूलों से वन है खाली !!
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भीलों ने वन बांट लिया है
चंदा सूरज बांट रहे हैं,
सब चुप होकर देख रहें बस
वो रंगों को छांट रहे हैं।
अनहोनी की ऐसी आहट
दिन हम कैसा काट रहे हैं ?-
अवसादों का जग कातर मन
बहक रहा झुलसे वन में,
मरते स्वप्नों की चीखें हैं
नीर भरे इस लोचन में।-
भोर के उजास से,दीप के प्रकाश तक
अनवरत सहेजती,प्राण के प्रवास तक।
मौन गीत गा रही,रोज गुनगुना रही
घोर अन्धकार में भाग्य को सुना रही।
रीढ़ की प्रवीणता, प्रीत में नवीनता
हर घड़ी प्रयास ही, सांस के निवास तक।
शक्तिहीन शक्ति हो,शक्ति मात्र व्यक्ति हो
पूज्य हो भ्रमित कथा,कथ्य सत्य उक्ति हो।
नेह चाहना सदा, देहयष्टि याचना
चींटियां रहीं सदा, शेष मृदु मिठास तक।
कल्प चक्र वेदना, तप्त अग्नि भेदना
जानकी कि द्रौपदी, द्वंद मूल चेतना।
सत्यता कठोर है, है अशेष भावना
साधना पथी बनें, नारियां प्रभास तक।
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भोर के उजास से, दीप के प्रकाश तक
अनवरत सहेजती,प्राण के प्रवास तक।
रीढ़ की प्रवीणता, प्रीत में नवीनता
हर घड़ी प्रयास ही,साँस के निवास तक।।-
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प्रतिध्वनित हैं अन्ध कूपें
मोक्ष देतीं अट्टहासें,
हो रहे उद्’घोष आओ..
तोड़ दो सारे मिथक को
पुण्य पथ पर निकल कर
स्वजनों का दान करने
मौत का स्नान करने !
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चले दर से तुम्हारे हम
पहाड़ों सा उठाए गम।
किसे आवाज दें बोलो
खताओं की सुनो सरगम।
लगाए तुम रहो मजमा
हमें सदमा मिले हरदम।
मुरादें हों न हो पूरी
सियासत का उठा परचम।
मरें डूबे दबें कुचलें
चलो संगम चलो संगम।-