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...कैफ़ियत-ए-ख़याल अलग कर जाएँ
भूल चले जो सैलाब ले गए डुबा के
...दरिया-ए-अश्क बन कर दर्द बह जाएँ
बिखर से गए पन्ने ज़िंदगी कि किताब के
...क़स्द-ए-सफ़र समेट कर अब उड़ जाएँ
कितनी बार और जोड़ें ये टुकड़े काँच के
...ज़ख़्म-ए-दिल पर अब फिर से ना चुभ जाएँ-
मेरी कैफ़ियत मुनाफिक पूछ रहे हैं,
अब इससे बुरा क्या हाल होगा..!!
जो मेरी दुनिया है उसे खो चुका हूँ,
अब किस बात का मलाल होगा..!!
कोई अपना हो तो कुछ पूँछू उससे,
अब इन गैरों से क्या सवाल होगा..!!
और तेरा शुक्रिया ज़िंदगी,
मेरा हर मोड़ पर साथ निभाने के लिए,
पर अब बस कर,
भला इससे ज्यादा क्या कमाल होगा..!!-
कैफ़ियत ए ग़म हम जो सुनाते रहे उसको
वो हमारा अंदाज़ ए अशआर समझता रहा-
कैफ़ियत इस दिल की क्या बतायें उसको,
उसे खो कर हम आज भी ख़ुद की तलाश में हैं।।-
ये रंगीनियां रातों की यकीनन
सुबह की तसल्ली में तब्दील हो जाएंगी
महफिल-ए-ख़्वाब का इस्तकबाल
जो कैफ़ियत-ए-शबाब से किया जाये
Ye rangeeniyaan raaton kee yakeenan
Subah kee tasallee mein tabdeel ho jaengee
Mehafil-e-khwaab ka istakbaal
Jo kaifiyat-e-shabaab se kiya jaaye
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हर अश्क़ को खुशी का है ये जताते रहे उसको,
वो हर झूठी हँसी पर मेरी जाम छलकाता रहा।-
मेरी कैफी़यत पुछने का ख़्याल कहां से आया।।
आपके गर्दन पर ये लाल निशान कहां से आया।।
लगता है लोगों को ठगने का का़यदा सीख रही है।।
सुना है आजकल आप फायदा देखकर बिक रही है।।
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आज हम आपको शुभ अपराहन बोलते हैं,
कल मिलिए हमसे,,
कल हम आपसे आपकी कैफियत पूछते हैं।।
.... Harsh Kumar-