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मिलेंगें हमें वो ये सौगात होगी,
मुबारक़ वही फिर मुलाक़ात होगी।-
मुक़द्दर से बढ़ कर मिला कुछ नहीं है,
मुझे ज़िंदगी से गिला कुछ नहीं है।।
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122 122 122 12
उन्हें सोच कर शब गुज़ारी कई,
कहानी मेरे इश्क़ की है नई।
मुलाक़ात उनसे हुई ना अभी,
मगर दिल के दर पर खड़े हैं वही।-
2122 1122 1122 22/112
लौट आओ कभी तुम वादा निभाने के लिए,
हम हैं नाराज़ हमें आओ मनाने के लिए ।
जीस्त ये मेरी अधूरी है तेरे नाम के बिन,
इश्क़ झूठा नहीं करती मैं दिखाने के लिए ।
झूठ ही बोल दो करते हो मुहब्बत मुझसे,
मेरी उल्फ़त का भरम रख लो ज़माने के लिए ।
फूल गुलदान में नक़ली जो सजा रक्खें हैं,
ऐसा ही इश्क़ तुम्हारा है दिखाने के लिए ।
तुम न आओगे कभी ख़ैर ख़बर लेने को,
जान जाएगी मेरी तुम को भुलाने के लिए ।
उसने जब देख के अनदेखा किया था “ मीना”,
इतना काफ़ी था मेरी जान को जाने के लिए ।
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तुम्हारा ग़म तुम्हारे बाद यूँ मुझको सताएगा,
मैं चाहूँ लाख ये दिल फिर न मेरा मुस्कुरायेगा।
कहाँ तू चल दिया ग़म के हवाले छोड़ कर मुझको,
मैं अक़्सर सोचती थी तुझ से यूँ जाया न जायेगा।-
2122 2122 2122 212
जाम ए मय आँखों से उनकी पी असर अच्छा लगा,
था बहुत मुश्किल मगर वो रहगुज़र अच्छा लगा ।
रह गया जो दरमियाँ अपने दिलों के हमसफ़र,
अनकहा सा ही सही हमको मगर अच्छा लगा ।
कुछ की उल्फ़त पा गई मंज़िल मुहब्बत की मगर,
राज़ ए दिल किसको पता पर वो सफ़र अच्छा लगा ।
छोटा सा आँगन है कमरे दो मकाँ में बस मेरे,
जो है जैसा भी है मुझको मेरा घर अच्छा लगा ।
आपको पाया जो “मीना “ ज़िन्दगी की राह में,
आपसे बढ़कर न कोई हमसफ़र अच्छा लगा ।-
2122 1122 1122 22/112
आरज़ू साथ की तेरे जो सताती है हमें,
ज़िन्दगी तब बड़ी मुश्किल हुई जाती है हमें ।
दिल ये नाशाद हुआ जब मेरा फ़ुर्कत में तेरी,
बाहें फैला के तेरी याद बुलाती है हमें।
मेरे हिस्से में हमेशा से ही ग़म आए क्यों ,
पास तेरे ए ख़ुदा बात ये लाती है हमें ।
वो नहीं आईं बुलाने पे हमारे क्यूँकर,
बस यही बात हमेशा से सताती है हमें।
नूर मुखड़े का तेरे छुप नहीं सकता “मीना”,
चाँद तारों में नज़र तू ही तो आती है हमें ।
तेरी ग़ज़लों में सुकूँ है ये अजब सा “मीना”,
दर्द ओ ग़म जीस्त के सब ये ही भुलाती है हमें ।-
2122 1212 22
ज़िक्र ए फ़ुर्क़त जो कर गया कोई,
चश्म आँसू से भर गया कोई।
इस ख़बर की खबर नहीं है उसे,
रेज़ा रेज़ा बिखर गया कोई।-
221 2122 221 2122
रुखसार पर तुम्हारे जैसे ही बाल आये,
कामों को हम ज़रूरी फिर देखो टाल आये।
जान-ए-जिगर तुम्हीं हो,तुमसे है जिंदगानी,
कैसे सिवा तुम्हारे कोई ख़याल आये।-
2122 1212 22
उनसे दूरी है अब सज़ा जैसे,
ग़मज़दा हो गई फ़ज़ा जैसे।
ज़िन्दगी को गुजारना है अब,
कुछ रहा ही नहीं मज़ा जैसे।
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2122 2122 212
दास्तान ए दिल बड़ी अच्छी लगी,
वो मुहब्बत की घड़ी अच्छी लगी ।
कल गली से जब मैं उसकी गुज़रा था,
मुझको वो छत पर खड़ी अच्छी लगी।
आँखें नम उल्फ़त में मेरी हो गईं,
बाद सावन के झड़ी अच्छी लगी।
देखकर मुझको वो शर्माईं बहुत,
आँख की वो फुलझड़ी अच्छी लगी।
ग़ज़लें “मीना “पढ़ती मेरी रोज़ हो,
कब कहोगी ये बड़ी अच्छी लगी।-