मुहब्बत से बिछड़ के गर्दिश ए अय्याम आता है,
जिन्हें चाहा कभी लब पे उन्हीं का नाम आता है।
तुम्हारी ही सिताइश दिल हमारा करता है दिलबर,
कोई इसके सिवा दिल को नहीं अब काम आता है ।
है धड़कन एक अपनी एक ही अब ज़िंदगानी है,
हमारे नाम में ही अब तुम्हारा नाम आता है ।
मुहब्बत हो नहीं सकती यही कहते जो रहते हो,
हमारा दिल दुखा के क्या तुम्हें आराम आता है।
मिलेगा दर्द ही मीना मुहब्बत करके दुनिया में,
ग़मों की मय-कशी में तो ग़मों का जाम आता है।
* गर्दिश-ए-अय्याम= मुसीबत और दुःख का ज़माना
*सिताइश =तारीफ़
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मुक़द्दर से बढ़ कर मिला कुछ नहीं है,
मुझे ज़िंदगी से गिला कुछ नहीं है।।
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मुहब्बत जब तुम्हारी मुझको यूँ आवाज़ देती है,
दबे जज़्बात को ये खुल के तब परवाज़ देती है।
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2122 2122 212
दिल मुहब्बत करके है रोया बहुत,
कह न पाया बात पर सोचा बहुत ।
अपनी चाहत पर पशेमाँ दिल हुआ,
कर दिया जब आपने रुसवा बहुत ।
हम हुए बदनाम जिनके इश्क़ में,
वो न आए रास्ता देखा बहुत ।
हसरतें अपनी दबा कर जी रहे,
वक्त उल्फ़त में किया ज़ाया बहुत ।
आपके इक फ़ोन की ख़्वाइश में ही,
अपना मोबाइल सनम देखा बहुत ।
वादे करके आप तो भूले सभी,
हमने सुब ओ शाम ये सोचा बहुत ।
मिलने की चाहत हमें हरदम रही,
अपने अरमानों को भी रोका बहुत ।
इश्क़ पहले सा रहा “मीना “कहाँ,
खा रहे हैं लोग अब धोखा बहुत।-
बदलता रंग इंसा है यही फ़ितरत जो है पाई,
फिसलते पैर सच के जब जमी हो झूठ की काई।
फरेबी इस जहाँ में कौन अपना है या बेगाना,
दिया धोखा जो अपनों ने समझ उस दिन मुझे आई।
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कलम हाथों में शायर के लगी अँगड़ाइयाँ लेने ,
ग़ज़ल दिल से निकल के काग़ज़ों पे रक्स करती है|-
चमकते चाँद से रौशन हुआ है कहकशाँ सारा,
मगर उल्फ़्त के जुगनू ज़िंदगी को जगमगाते हैं ।-
हमने इक उम्र गुज़ारी है अकेले रहकर,
अब नहीं हम कभी तन्हाई से डरने वाले।-
221 2121 1221 212
उल्फ़त है इक गुनाह किए जा रहा हूँ मैं,
दुन्या से बस निबाह किए जा रहा हूँ मैं।
उनको नहीं है राब्ता उल्फ़त से कुछ मेरी,
उम्मीद बेपनाह किए जा रहा हूँ मैं ।
मानो न मानो बात मेरी सच मगर है ये।
चुपके से दिल में राह किए जा रहा हूँ मैं।
रातों का नींद से नहीं है वास्ता कोई,
यादों में दिन सियाह किए जा रहा हूँ मैं।
है आख़री ग़ज़ल मेरी “मीना”क़ुबूल लो,
तुमको ग़ज़ल निगाह किए जा रहा हूँ मैं।
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122 122 122 122
मिलेंगें हमें वो ये सौगात होगी,
मुबारक़ वही फिर मुलाक़ात होगी।-
122 122 122 12
उन्हें सोच कर शब गुज़ारी कई,
कहानी मेरे इश्क़ की है नई।
मुलाक़ात उनसे हुई ना अभी,
मगर दिल के दर पर खड़े हैं वही।-