सुनीता 📝   (* आरसी *)
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Joined 15 June 2019


Joined 15 June 2019
23 JAN 2022 AT 13:22

My verses get intact,
When your thought...
Fills, Accomplish the
Blanks Between my words
Like you Complete me...

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22 JAN 2022 AT 18:48

पत्थर जब भी फेंका होगा,
लहरों का दिल उखड़ा होगा।

वीराना है जिन आँखों में,
शायद कोई ठहरा होगा।

मौन उसका सुन, रो उट्ठे दर,
कितना शख़्स अकेला होगा।

बारिश जख़्म जलाती क्यों है,
नभ का चाक कलेजा होगा।

पत्ते ज़र्द, ख़ला है हरसू,
पतझड़ शायद गुजरा होगा।

अक्स मुकम्मल ना बन पाया,
जर्जर दिल का शीशा होगा।

जो ना था तेरी किस्मत में,
"आरसी" कहीं लिक्खा होगा।

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17 JAN 2022 AT 13:22

सोचती हूँ तुझे बीजगणित का कोई प्रमेय बना दूँ!
जब ना भूल पाऊँ तेरी यादों के समीकरण को
तब एल.एच.एस. बराबर आर.एच.एस. कर के
उन्हें सिध्द कर के छोड़ दूं मन के अधूरे पृष्ठों पर।

क्योंकि तुम रसायन की किसी सतत् प्रकिया-से,
बनाते रहते हो गहरे जटिल आबंध मुझ में।
तुम्हारे और मेरे हृदय के बीच बना भावनाओं का बंध
जो शायद ना टूटे, जब तक आॅक्सीजन के अणु
प्रवाहित होते रहेंगे मेरे रक्त कणों में, मेरी साँसों में।

यह प्रक्रिया अनवरत घेरे रहेगी मेरे हृदय-नाभिक को
तेरे प्रेम रूपी इलेक्ट्रॉनों के परिक्रमण से, अनंत तक...

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16 JAN 2022 AT 13:16

प्रेम के पथ पर चले थे हम दोनों ही साथ लेकिन,
तुमने पगडंडी चुनी, मैंने प्रतीक्षा से भरा खुला मैदान।

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12 JAN 2022 AT 21:24

बड़ा ही ख़ूब ये किस्सा हुआ है,
मेरे जैसा तू भी उजड़ा हुआ है।

कभी रौनक थी घर में जिस शजर से
उसी से अब वहाँ साया हुआ है।

नज़र उट्ठी, झुकी बस चल दिए तुम,
भला ये भी कोई, मिलना हुआ है।

करें जो गुफ़्तगू, फ़ारिग लगें हम,
रहें जो चुप कहें, रूठा हुआ है।

नज़र अंदाज करने तुम लगे हो,
चलो ये इल्म भी अच्छा हुआ है।

भला कब तक तेरी यादें सँभालूं,
पलक पर बोझ अब ज़्यादा हुआ है।

असर ना हो ग़ज़ल में आज शायद,
लिखे अब "आरसी" अरसा हुआ है।



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7 JAN 2022 AT 12:13

बज़्म में खुद को यूँ तन्हा कर लिया,
दीद का तेरी इरादा कर लिया।

कर चुके थे इश्क़ से तौबा मगर,
मर्ज़ हमने दिल ही वाला कर लिया।

हर्फ़ में ना हो बयां चाहत तो क्या,
खामोशी पढ़ने का वादा कर लिया।

हमनवां कर दर्द को तन्हाई का,
उम्र भर का ही सहारा कर लिया।

इश्क़ की सौदागरी है घाटे की,
जान कर भी ये ख़सारा कर लिया।

कह न पाए कोई तुझ पर हम ग़ज़ल,
इल्म सारा यूँ ही, ज़ाया कर लिया।

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5 JAN 2022 AT 12:11

एक संवाद
अनवरत होता
चुप्पियों में भी।

एक दीपक
सदा प्रज्ज्वलित
तिमिर में भी।

एक उम्मीद
नित जगमगाती
निराशा में भी।

जीवन सरि
निर्बाध बहती है
बंधनों में भी।

तुम और मैं
यूँ ही मिलते सदा
दूरियों में भी।

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4 JAN 2022 AT 22:10

मंजिल तक पहुँचने के लिए जरूरी है कि
पहले पैरों से काँटे को निकाला जाए।।

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2 JAN 2022 AT 22:01

एक औरत,

न केवल चुभती है,

अपितु वह......

शून्य कर देती है

अस्तित्व उसका,

जिसको वह

नकार देती है.....

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30 DEC 2021 AT 10:49

जज्बातों की विज्ञान से
मन की किताब पर
लिखी थी जो इक्वेशन
उस लड़की ने,
झुमके के अणुओं से......
तोड़ दिए वो प्रेम-बंध
जो उलझे थे खुले बालों में
क्यों कि वो लड़का
जो पढ़ रहा था....
प्रेम का रसायन
उलझता नहीं था जो
किसी भी प्रश्न पत्र में
दुविधा में पड़ गया था
परिवार के समीकरण पर
समाज की गणित का हल
किसी विकल्प में नहीं था।

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