सुनीता 📝   (* आरसी *)
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Joined 15 June 2019


Joined 15 June 2019
23 JAN 2022 AT 13:22

My verses get intact,
When your thought...
Fills, Accomplish the
Blanks Between my words
Like you Complete me...

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22 JAN 2022 AT 18:48

पत्थर जब भी फेंका होगा,
लहरों का दिल उखड़ा होगा।

वीराना है जिन आँखों में,
शायद कोई ठहरा होगा।

मौन उसका सुन, रो उट्ठे दर,
कितना शख़्स अकेला होगा।

बारिश जख़्म जलाती क्यों है,
नभ का चाक कलेजा होगा।

पत्ते ज़र्द, ख़ला है हरसू,
पतझड़ शायद गुजरा होगा।

अक्स मुकम्मल ना बन पाया,
जर्जर दिल का शीशा होगा।

जो ना था तेरी किस्मत में,
"आरसी" कहीं लिक्खा होगा।

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24 SEP 2020 AT 20:41

छुपा रखे हैं ग़म के प्याले इन आँखों में,
कैसे कोई ख़्वाब सजा ले इन आँखों में।

गर चाहे तो हाल-ए-दिल पढ़ ले तू मेरा,
या आईने का ही मजा ले इन आँखों में।

मयख़ाने, जाम - ओ - पैमाने बीती बातें,
तू आब-ए-हयात का नशा ले इन आँखों में।

ना होगी हमसे ये अदब-ए-अयादत झूठी,
डूब जरा ओ जाम-ए-शिफ़ा ले इन आँखों में।

हैं रंग निराले, इस रंगीन जमाने के,
न देख सके फसील उठा ले इन आँखों में।

गुजरी हर शय आमद से तुर्बत बेपर्दा,
हो रुस्तम सच अपना छुपा ले इन आँखों में।

पूछ न बैठे आईना, आप की तारीफ़,
अक्स-ए-अना "आरसी" बचा ले इन आँखों में।

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15 AUG 2020 AT 21:34

हुकुम मेरे आकी

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15 AUG 2020 AT 14:46

...

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9 AUG 2020 AT 14:42

देख ले दर्पण खुदी, फिर वो दिखा दे मुझ को,
बाद फिर चाहे तो, नजरों से गिरा दे मुझ को।

दफ़्न करना है मुझे भी चंद अहसासों को,
हो कफ़न-गर कोई तो कीमत बता दे मुझ को।

हाल मेरा पूछने वाला नदारद था जो,
अब दिखावे के लिए ना वो दुआ दे मुझ को।

दूर साहिल है मेरा, पतवार भी अब टूटी,
बादबाँ बन कोई तो अब हौसला दे मुझ को।

सच कहूँ रूठें हैं अपने, झूठ मुझ को खटके,
क्या करूँ तदबीर, रब तू ही बता दे मुझ को।

रंग गिरगिट से, नकाबों पर चढ़े हैं जिस के,
वो न आकर सच की मेरे, अब सजा दे मुझ को।

जज़्ब कर बैठी हूँ शोले दिल के तहखाने में,
शख़्सियत हो कागजी गर, ना हवा दे मुझ को।

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7 FEB 2020 AT 12:11

एक नूर-ए-माहताब है, एक है रंग-ए-आफ़ताब,
बाकमाल है ये जोड़ी, जैसे अब्सार और ख्वाब।
कहकशां खिले आंगन में सूरजमुखी औ गुलाब,
मिले हैं मेहर-ओ-माह जैसे जिनको ये पासवान।
यकीनन नाज करेगी कभी उन फूलों पे खियाबां,
जिन कलियों को मयस्सर, ऐसे शजरे-बागबान।
मेहर अपनी बनाए रखे खुदा इस आशियाने पर,
बसंत रहे सदा न आए कभी पतझड़-ए-अज़ाब।

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17 JAN 2022 AT 13:22

सोचती हूँ तुझे बीजगणित का कोई प्रमेय बना दूँ!
जब ना भूल पाऊँ तेरी यादों के समीकरण को
तब एल.एच.एस. बराबर आर.एच.एस. कर के
उन्हें सिध्द कर के छोड़ दूं मन के अधूरे पृष्ठों पर।

क्योंकि तुम रसायन की किसी सतत् प्रकिया-से,
बनाते रहते हो गहरे जटिल आबंध मुझ में।
तुम्हारे और मेरे हृदय के बीच बना भावनाओं का बंध
जो शायद ना टूटे, जब तक आॅक्सीजन के अणु
प्रवाहित होते रहेंगे मेरे रक्त कणों में, मेरी साँसों में।

यह प्रक्रिया अनवरत घेरे रहेगी मेरे हृदय-नाभिक को
तेरे प्रेम रूपी इलेक्ट्रॉनों के परिक्रमण से, अनंत तक...

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16 JAN 2022 AT 13:16

प्रेम के पथ पर चले थे हम दोनों ही साथ लेकिन,
तुमने पगडंडी चुनी, मैंने प्रतीक्षा से भरा खुला मैदान।

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12 JAN 2022 AT 21:24

बड़ा ही ख़ूब ये किस्सा हुआ है,
मेरे जैसा तू भी उजड़ा हुआ है।

कभी रौनक थी घर में जिस शजर से
उसी से अब वहाँ साया हुआ है।

नज़र उट्ठी, झुकी बस चल दिए तुम,
भला ये भी कोई, मिलना हुआ है।

करें जो गुफ़्तगू, फ़ारिग लगें हम,
रहें जो चुप कहें, रूठा हुआ है।

नज़र अंदाज करने तुम लगे हो,
चलो ये इल्म भी अच्छा हुआ है।

भला कब तक तेरी यादें सँभालूं,
पलक पर बोझ अब ज़्यादा हुआ है।

असर ना हो ग़ज़ल में आज शायद,
लिखे अब "आरसी" अरसा हुआ है।



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