डूबकर सोए तेरे खयालों मे , चैन कहाँ नसीब हुआ
हैरत में डाला है जालिम ने किश्त नींदों की मांगकर-
कब तक मुझसे बिन बात ऐसे लडोगी।
बता दो आज आखिर तुम्हारी रज़ा क्या है।
कब तक तुम यूँ किश्तों में प्यार करोगी।
बता दो इश्क़ लड़ाने की मुझे सज़ा क्या है।
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कर्ज़ जो लिया था तेरी मोहब्बत का,
दिल के हर टूटे हिस्से से क़िस्त चुका रही हूँ!-
अब क्या बताऊँ तुम्हें
तुम्हारेे 'प्यार' ने मुझे
क्या-से-क्या कर दिया
बस इस बियाबान जंगल को
'किश्त-ए-ज़ाफ़राँ' कर दिया
- साकेत गर्ग 'सागा'-
यूँ न किश्तों में खत्म करों दास्ताँ मेरी,
एक ही वार कर मेरे सारे अरमान ले लो
मुझे फ़कत मालूम है कौन हूँ मैं और क्या
तुम चाहते हो गर तो वही पहचान ले लो-
मुतमईन हो जाता है दिल
भरोसे को किश्तों में खरीदकर
कीमती जो होता है......
टूटता है जब भरोसा
बिखर जाता है दिल....
दोनों ....शीशे के जो होतें हैं!-
साँसों की किश्तों से, जीवन का, ऋण उतारता हूँ मैं
जीने के लीये, खुद को, हर घड़ी हर पल,मारता हूँ मैं-
किश्तों में कुछ ऐसे
काट रहे हम
सजा इश्क की
कि
पहली किश्त
भरते भरते
दूसरी किश्त की
कीमत बढ़ जाती हैं
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कभी इस चार दीवारी में
किराया कुछ ज़्यादा था क्या मकाँ का
सही छूट शायद मिली होगी क़ीमत में
या किश्तों में भर रहे हो क़र्ज़ इम्तिहाँ का
ठिकाना अब जो मिला किसी और दिल में
मुआहिदा क्या है कम उस नए आशियाँ का
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जी रहा हूँ ज़िन्दगी किश्तों में,
दे रहा हूँ ब्याज इन साँसों से.....-