Rohit Sharma   (उन्मुक्त स्याही "SaaR")
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Joined 24 May 2017


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15 MAR AT 9:41

रंग बदलती रही ज़िन्दगी पल पल में,
कल बीत गयी होली कल कल में।।

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16 DEC 2024 AT 13:29

लिखे न जाने कितने खत तुम्हे,
पर किसी भी खत का जवाब तुमने दिया नहीं,
शायद वो सारे खत तुम्हे मिले नहीं,
या तुमने मेरे खतों को आज तक पढा नहीं

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12 DEC 2024 AT 15:41

जयद्रथ वध
(अनुशीर्षक में पढ़े)

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10 DEC 2024 AT 2:08

ज़िन्दगी से उधार लिए थे कुछ लम्हें जीने की ख़ातिर,
किश्तों में मर रहे आजकल उन लम्हो में जीने की ख़ातिर।।

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10 DEC 2024 AT 2:05

हमदर्द बनाये भी किसे आजकल हम,
जब हमदर्द को ही दर्द देने आजकल हम

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10 DEC 2024 AT 0:03

तुम्हे लगता है कि मैं अकेले में तुम्हे सिर्फ नँगा करना चाहता हूँ,
या मेरी ख़्वाहिश सिर्फ इतनी सी है कि तुम परस दो खुद को मेरे बिस्तर पर,
और मैं नोंच लूं तुम्हारे ज़िस्म को किसी भूखे साहिर की तरह,
या सिर्फ तुम्हे सज़ा कर रखूँ अपनी कामवासना के लिए,
लेकिन ऐसा नहीं है,
किया है मैंने प्रेम तुमसे, यह सच है अनन्त से अनन्त तक,
किन्तु ये भूख जो ज़िस्म की होती है, चाहे तो मिटा सकता हूँ तुम्हे फरेब दे कर,
किन्तु नहीं मैंने सदैव किया है पूजन हमारे प्रेम का,
कामग्रस्त होकर कभी नग्न नहीं किया तुम्हे,
और ना ही चाहा कि तुम्हारी देह पर कोई कलंक हो,
क्योंकि मेरे प्रेम की जो निशानी है,
वो छप चुकी है तुम्हारे हृदय की पटल पर।।

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10 DEC 2024 AT 0:02

आज बहुत तड़प लिया, आज बहुत तरस लिया,
आज लिखा भी था तुम्हे, पर तुमने पढा नहीं,
कर दिया ख़ामोश मेरे हर लफ्ज़ को,
लेकिन अब तुम्हे सुनना नहीं पड़ेगी मेरी कोई ज़िद,
क्योंकि न जाने कल क्या गुज़रे मेरा,
मुझे यकीन है कि तुम ढूंढोगे मुझे,
मेरे हर पुराने लिखे हुए लफ़्ज़ों में,
तुम्हे सुनाई देगी मेरी हर ख़ामोशी,
ढूंढोगे तुम मुझे अपने दिल के कोने पर,
लेकिन मैं तो जा चुका होऊँगा,
न जाने किस अंत:हीन सफर पर,
तुम्हे सुनाई देंगे मेरे हर गीत हवाओ में,
पर न सुन पाओगे अब तुम कभी आवाज़ मेरी,
सोचा था करेंगे आज गुफ़्तगू चाँद के साथ,
पर शायद आज चाँद भी दग़ाबाज़ बन गया,
रह गयी मेरी ज़िंदगी की एक अधूरी स्याह रात।।

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19 NOV 2024 AT 17:52

किसी रोज़ तुम मुझे याद करोगे,
मेरे इश्क़ पे यूँ ऐतबार करोगे,
सो जाऊँगा जिस रोज़ नींद-ऐ-सदा के लिए,
उस रोज़ मुझसे मोहब्बत का इज़हार करोगे

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19 NOV 2024 AT 13:00

आज फ़िर गुज़रा मैं उस गली से,
जिस गली से गुजरे हुए ज़माना हो गया,
उस गली के मोड़ पर वो तुम्हारा घर दिखा,
उस घर की छत पर मैंने नज़र उठा कर देखा,
सब कुछ था उस छत पर,
एक पौधा था खिले हुए गुलाब का,
एक गमला गेंदे का, एक कमरा,
जिसकी खिड़की खड़े होकर तुम बाल सुखाती थी कभी,
सब कुछ वही था पहले की तरह लेकिन आज सब कुछ उदास था,
क्योंकि तुम नहीं थी उस खिड़की में।।

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26 MAY 2024 AT 7:05

नए एहसास, नए अल्फ़ाज़,
नई सी कोई कहानी लिखूँ,
कुछ नए ख्वाबो को रात रानी लिखूँ,
तुम समझो मेरे हर एक धड़कन को,
मेरे दिल की दरों दीवार पर,
तुम्हारा नाम लिखूँ,
जो पूछे कोई मुझसे,
मोहब्बत की शिद्दत,
तुम्हारे नाम संग,
अपना उपनाम लिखूँ।।

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