सारा खेल समय का है
हम बस अपना किरदार निभा रहे-
बहुत से किरदार निभाने की सोचता हूँ
किसी औरत को देखकर हार मान लेता हूँ।-
एक बात कहूँ
ग़लत मत समझना
अपनी माँ को कभी भी
ईश्वर की तरह मत पूजना,
भगवान को इस धरती पर
बस भगवान बनकर रहना है
उन्हें तो सिर्फ़ मंदिर में
मूर्ति बनकर बैठना है,
पर माँ किसी की बेटी, बहन,
सहेली, पत्नी और कर्मचारी भी है,
याद करो माँ के अंदर की माँ
बाक़ी किरदारों से कभी हारी भी है,
ऐसा न हो कि माँ की
कोई और भूमिका
जब माँ होने से टकरा जाए
बच्चा नासमझी में माँ को
दोषी ठहरा जाए,
अगर करते हो सचमुच में
अपनी माँ से प्यार
अपनाकर दिखाओ उसके
बाक़ी सारे किरदार।-
भार उठता नहीं अपने 'किरदार' का हमसे।
कितना बोझ लेकर चलतीं होगीं "किताबें"।-
कुछ किरदार
बचना चाहते हैं
कहानियों से
लेकिन
जाने -अनजाने
घसीट लिए जाते हैं,
थोप दी जाती हैं
उन पे जिम्मेदारियाँ,
थर्राते
गिरते
सम्भलते
उनका कमजोर वज़ूद
भारी बोझ वहन
करते-करते
निखर आता है,
पर्दा गिरने से
पहले
अमर हो जाते हैं
कुछ किरदार . ...
-
मैं कहानियां लिखता हूँ
मेरे किरदार हर तरफ मिलते हैं
गली में, सड़क पर
स्कूल में, दफ़्तर में
और घर में भी
कुछ किरदार ऐसे भी गढ़े मैंने
अपनी कलुषित कल्पना से
जो पहले नहीं थे
अब मिलने लगे हैं
अब ऐसा कोई किरदार नहीं
जो अछूता हो मेरी कलम से
मैं समझता हूँ
मैंने वही लिखा जो दिखा
पर मेरे कुछ किरदार कहते हैं
वे नहीं होते
गर मैंने उन्हें नहीं गढ़े होते...!!-
खिलौना नही, डॉक्टर हो आप,
सबके लिए जीवन दायिनी हो आप..
मज़ाक नही, किरदार हो आप,
सबके लिए मुस्कुराती कहानी हो आप...!-
किरदार निभा कर जाएँगे
ये जीवन है चलचित्र दोस्तों
अन्त तक अपना अभिनय दिखाएँगे
किरदार निभाने आयें हैं
किरदार निभा कर जाएँगे।-
तुझे चाहने का ख़याल करूँ
कभी मैं ख़ुद से सवाल करूँ
इश्क़ हराम कह गए कुछ लोग
चली आ उसे अब हलाल करूँ
इक आँसू जो देखूँ तेरी आँखों में
अपनी आँखों को मैं लाल करूँ
मेरा किरदार ही तो पसंद है तुझे
और किस बात का मलाल करूँ
मोहब्बत कर लो "आरिफ़" अब
नूर सबके अब क्यों जमाल करूँ
"कोरा काग़ज़" जो हो अगर तुम
कभी लिख कर भी कमाल करूँ-