एक बात कहूँ
ग़लत मत समझना
अपनी माँ को कभी भी
ईश्वर की तरह मत पूजना,
भगवान को इस धरती पर
बस भगवान बनकर रहना है
उन्हें तो सिर्फ़ मंदिर में
मूर्ति बनकर बैठना है,
पर माँ किसी की बेटी, बहन,
सहेली, पत्नी और कर्मचारी भी है,
याद करो माँ के अंदर की माँ
बाक़ी किरदारों से कभी हारी भी है,
ऐसा न हो कि माँ की
कोई और भूमिका
जब माँ होने से टकरा जाए
बच्चा नासमझी में माँ को
दोषी ठहरा जाए,
अगर करते हो सचमुच में
अपनी माँ से प्यार
अपनाकर दिखाओ उसके
बाक़ी सारे किरदार।
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