सफ़हे बेहिसाब लाती हैं
आँखे बनकर किताब आती हैं-
गंगा सी है पावन लगती
माँ के माथे की बिंदी है
संस्कारों की सुंदर थाती
प्यारी ये भाषा हिंदी है|
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐-
यशोदा का लला है, देवकी माँ कोख जाया है
अंधेरे से रिहा होकर, उजाला लौट आया है
खुले सब द्वार स्वागत में, जुटे यमुना धरा अंबर
बजे ढोलक- नगाड़े नंद घर आनंद छाया है-
रमे राम में वे सदा, राम भक्त हनुमान
राम सिया हिय में बसे, नहीं जगत का भान-
बोझ ढोते ढोते
पाकर सब कुछ
खोते-खोते
भावों की गठरी
दरक ही जाती है
रेत सरक ही जाती है
संभालते संभालते
रोकते टोकते
थामते फिसलते
रेत सरक ही जाती है
ठहराव कहाँ भाता है
इस पुल , उस पुल
बहते बहते
चंचल , मदमस्त
नदी रूक नही पाती है
रेत सरक ही जाती है
पहिया समय का
निस-दिन घूमें
सुखों-दुखों की
धारा चूमे
गाड़ी रूक नहीं पाती है
रेत सरक ही जाती है
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नभ को जो छू सके, मन ऐसा एक परिंदा रखना
इठलाए बचपन मुस्कानों में, मासूमियत जिंदा रखना . ...
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ग्रामा- एक अनुरागिनी
कवि -राजकुमार 'राज'
पुस्तक प्रेमी अवश्य पढ़ें-
चुने वो पुष्प भावों के, पिरोती हार शब्दों का
कुशल है हर विधा में जो, मिला उपहार शब्दों का
पुकारे नाम वो जब भी, सुशोभित मंच हो जाता
लिखे जब भजन माँ के, हुआ श्रृंगार शब्दों का।।
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नुक़्ता लेकर उर्दु से, चंद्रबिंदु का अभिमान रखती हूँ
कलम से काफ़िये लिखकर, रस, छंद का विधान रखती हूँ
सबद, गुरूवाणी, अजानों , प्रार्थनाओं सी है जो पावन
जुबाँ पर वो हिंदी दिल में हिंदुस्तान रखती हूँ।-
धरा गगन से कह रही, अब न हरी यह देह
शहर बढ़े, जंगल घटे, नहीं नदी से नेह।
साँसे भी मंहगी हुई, बिकता है अब नीर
पंछी को भाती नहीं, बदली सी तस्वीर।-