बहुत सी बातें
वो बातें
जो पढ़ी तो गयीं
पर समझीं न जा सकीं
वो बातें
जो लिखीं तो गयी
पर पढ़ी ही न गयी अब तक
वो बातें
जो लिखीं तो जानी थीं
पर कोई कर न सका साहस लिखने का।
बहुत सी बातें हैं
किताबों के पास
कहने को, समझने को
पर किताबें तो किताबें हैं
जो बन्द कर दी जातीं हैं
लिखने के बाद भी
और पढ़ने के बाद भी
और ठूँस दी जातीं हैं
दूसरी किताबों के बीच।
किताबें बात करतीं हैं
एक दूसरे से
और रचती हैं नयी कहानियाँ।
फिर ढूँढतीं है एक कलम
जो कैद कर दे उन कहानियों को
फिर किसी किताब में।
किताबों को कैद पसंद है शायद
मगर जो पढ़ता है उन्हें
उसे वो आज़ादी का रास्ता दिखलातीं हैं।
-