किसी किताब के उस पन्ने जैसा है वो
जिस पर अटक जाती हूँ मै बार बार ।
ना पूरा पढ़ पाती हूँ ना ही
पढ़ना छोड़ पाती हूँ ।
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ख़्वाहिश थी मेरी...एक अदद मुलाकात को,
पलटकर जो देखा उसने, तो आदाब हो गया!
मै खड़ा खड़ा ही रहा..ये उससे पूछता पूछता,
उसने झुकाई नजरें जब, तो जवाब हो गया!
फलसफा पढता रहा...फ़क़त सफा दर सफा,
उसने वो जो लिख दिया, तो किताब हो गया
मैने उम्र गुज़ारी, उनके बेहिसाब इंतजार में,
वो मुस्कुरा दिए बस यूँ, तो हिसाब हो गया!
एक मुद्दत से तरसा....मैं अपनी पहचान को,
उसने मेरा नाम लिया, तो खिताब हो गया!
दिल से मैंने ये चाहा की..भुला भी दूँ मैं उसे,
ये सोचते ही मेरा दिल मेरे ख़िलाफ़ हो गया!
भटकता रहा ताउम्र..उसके दिल के इर्दगिर्द,
बाद उसके इकरार के "राज" आबाद हो गया!-
जहाँ में ढूंढ रहे हो तो इसे भूल कहो
फूल से लोग किताबों में मिला करते हैं ।-
मैं कोई बंद किताब नहीं,जिसे पढ़ने की तलब हो,
लोग तो बंद किताबों से भी,दगा कर जाया करते है!!-
पन्ने पलटता रहा खुली किताब के मैं
एक गुलाब चाहिए बंद करने के लिए।-
जिस्मानी इश्क़ नहीं
इश्क़-ए-रूहानी हूँ मैं
तेरी ज़िंदगी की किताब में
चंद पन्नों की कहानी हूँ मैं
यूं तो तेरा हमसाया हूँ
पर तेरे लिए अनजानी हूँ मैं
चुपके चुपके रातों मे
आंखों से बहता पानी हूँ मैं
तुम दर्द देते रहो
लिखना आसाँ होगा
तभी तो क़लम से काग़ज़ पे
इश्क़-ए-बयाँ होगा
मुझ को दूर करोगे ख़ुद से
ख़ुद से दूर कहाँ जाओगे
साँसे जो लोगे हर पल तुम
मुझ को उनमें ही पाओगे !!
मेरी ज़िंदगी की ग़ज़ल में
कुछ अल्फ़ाज़ तुम्हारा होगा
तेरी ज़िंदगी की किताब में
आख़िरी पन्ना हमारा होगा..!!!
©LightSoul-
जिसमें पन्ने बेहिसाब हैं।
और कौन सा पन्ना
कब खत्म हो जाएगा?
इस किताब का यही जानना
हम सब के लिए सबसे बड़ा राज है।-