मेरे कानों में सन्नाटा गूँजता है…….
©LightSoul-
किरदार नहीं लिखती जज़्बात लिखती हूँ
अपने मेहबूब से की हुई बात लिखती ह... read more
सुनो…
बस इतनी जगह देना मुझे अपनी ज़िन्दगी में तुम….
कि… मेरी लिखी कोई भी एक कविता तुम्हें….. मुँह ज़ुबानी याद हो….
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“और फिर इक रोज़…..
…..तुम चले गए…
और मैं….. टूट गयी….
मेरे टूटने का कारण..
तुम्हारा जाना नहीं था…
मुझे तोड़ा था..
तुम्हारी आदत ने…
मुझे..
तुम्हारी आदत लग गयी थी….
किसी ने सच ही कहा है …
सिगरेट..शराब.. चरस…गाँजा….
किसी को नहीं मारते…
लोग मरते हैं …
इनकी आदत से…..”
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सुनो …
आज एक कप कॉफ़ी पे … कुछ पुरानी यादें ताज़ा करें …
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सुनो
दिवाली है दिवाली
मिठाइयाँ मखानों वाली
हर घर जले हैं दीप
हर घर सजी है रंगोली
जगमग हर घर ऐसा
जैसे रोशनी की हो होली
फुलझड़ी पटाखे छूट रहे हैं
भेद दिलों के टूट रहे हैं
गले मिलने की रीत है
आज उजालों की ईद है
चारों ओर जमघट है
धूम ऐसी मानो छठ है
पूजन की थाल है
बड़ा दिन नया साल है
फूल सजे हैं द्वार पर
दीप हर किवाड़ पर
मेज़ पर खान पान है
आ रहे मेहमान हैं
पटाखों की लड़ियाँ हैं
जल रही फुलझड़ियाँ हैं
चारों तरफ़ है धूम
आज दिवाली है
सुनो ना … कहाँ हो तुम !
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मेरी बाल्कनी पे हर रोज़ एक कबूतर आता है …
थोड़ी ही देर बैठता है
और फिर उड़ जाता है …
मैंने उसका नाम रखा है … सुख… !
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आजकल मैं तुम्हें लिखती नहीं हूँ …
शायद इसलिए ही आजकल मैं लिखती नहीं हूँ …..
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दर्द शब्दों को बहुत भारी कर देता है….
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मेरी खिड़की पे आयी… तुम्हारे शहर की वो हवा…
तुम्हारी ख़ुशबू दे गयी …. ले क्या गयी नहीं जानती ….
©LightSoul
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