Meghana Bose   (Meghana Bose Chatterjee)
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Joined 14 November 2016


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8 NOV 2023 AT 14:14

कहता है ज़माना कि हम इश्क़ में तेरे
दीवाने हो गए हैं,
पर सच तो ये है
कि इश्क़ को महसूस किए
हमे ज़माने हो गए हैं।

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12 APR 2023 AT 19:38

तजुर्बे कुछ ऐसे मिले हैं अब तक हमें,
कि अब ज़िंदगी मुस्कुराती भी है अगर
हमे देख कर,
तो हम सपना समझ कर मूंह फेर लेते हैं।

कभी लड़खड़ा कर गिर जाएं कभी,
और कोई हाथ दे सहारे का हमको,
तो हम धोखा समझ कर, खुद को
शक की परछाइयों से घेर लेते हैं।

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7 OCT 2022 AT 2:33

कुछ यूं उखड़ी है कुदरत इश्क़ से,
कि समंदर भी, किनारे से बिछड़ गया।
जो खुमार था हवाओं में,
नदियों संग सरगम बनाने का,
वो भी ढलते सूरज को देख
एक पल में उतर गया।
वादा किया था दिल ने मुझसे कि
इस बार महोब्बत संग ज़रा धीरज रखेंगे,
पर उसने भी कुदरत को देख
अपना वादा तोड़ दिया।

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24 SEP 2022 AT 11:52

चलो तुम्हे टुकड़ों में अलविदा कहती हूं
कल तुम्हारे स्पर्श को आखरी बार महसूस किया था,
आज तुम्हारे खतों को एक आखरी बार पढ़,
राख करने की कोशिश करती हूं।
यूहीं धीरे धीरे तुम्हारी हर एक याद से दूरी बना लूंगी,
यूहीं किश्तों में अपने दिल में फिर से प्रेम जगा लूंगी ।

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21 SEP 2022 AT 11:51

बिन देखे उसको,
उसकी धड़कन सुनी
तो अहसास हुआ,
कि ज़िंदा रहना क्या होता है!
जब देखूंगी तो शायद समझूंगी
"Love at first sight"
क्या होता है!

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10 SEP 2022 AT 5:41

आज कुछ तो लिखना है!

काफी दिन हुए ख़यालों को काग़ज़ पर उतारे हुए,
सुबह की चाय पर ही सही,
पर आज कुछ तो लिखना है।

हर रोज़ खिड़की पे बैठे इतनी कहानियां बटोरी हैं,
उस अंजान बच्चे के पहले कदमों पर,
या शाम को उस हरी बस से उतरने वाली के गजरे पर,
या फिर पड़ोस के घर की रसोई की खुशबू पर
आज कुछ तो लिखना है

ना जाने क्यूं कलम पकड़ने में हाथ अब थरथराते हैं,
ख़याल मेरे - संवरने को, शब्द नहीं ढूंढ पाते है,
बिना अर्थ का श्रृंगार करवाए, बिना रंगीन स्याही में लपेटे
एक साधारण, अशोधित छंद ही सही
पर कुछ तो लिखना है।

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1 AUG 2022 AT 3:42

न जाने क्यों, कभी कभी
खूब रोने का दिल करता है।
खुशियों से भरी हुई है जीवन की झोली,
अनुभवों के चौखट पर रोज़ होती है
एक नई , सुंदर सी रंगोली,
पर फिर भी कभी कभी
खूब रोने का दिल करता है।
ना कुछ खोने का डर है, ना ही दोस्तों की कमी
खिलखिलाहट से गूंजती है घर की दीवारें मेरी,
और ढूंढे नही मिलती आंखो में नमी।
पर फिर भी कभी कभी
खूब रोने का दिल करता है।
ना उठने का मन होता का ना सोने का जी करता है
बस यूं ही रोने का दिल करता है।

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3 JUL 2022 AT 2:10

कईं दफा कोशिश की मैंने
लफ्ज़ो में "जन्नत" बयां करने की...
मगर वो बड़ी आसानी से समझा गया "जन्नत"
बस गले लगाकर!

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1 JUL 2022 AT 3:32

Rain pours over Earth
as the clouds cry,
They roared well through 'June'
but, now is time to say goodbye.
That soil will reap some lives now,
whose womb was, so far, dry...
The year has lost half it's life,
yet, with a smile, it welcomes JULY!

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24 MAY 2022 AT 3:41

मेरे दिल की धड़कनें धड़कती हैं अब ज़माने के ताल पर ,
और धैर्य को हर दिन नया हथियार चुनने की
चिंता नहीं होती।
सन्नाटा गूंजता है कभी कभी, असहाय हिम्मत के लबों पर,
आखिर, हर चीख की आवाज़ नही होती।

पूछते हैं अक्स से अपने
कि ये कौन सा कायर दिखता है रोज़ आईने में मेरे?
कि क्यों अब सवाल के जवाब में
सवाल उठाने की हिम्मत नही होती?
हर रोज़ गूंजती है कानों में मेरे
आवाज़ मेरी ही अब तो,
क्योंकि, हर चीख की आवाज़ नही होती।

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