Hans Raj   (हंस राज)
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Part time writer, full time reader...
Joined 30 November 2016


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6 JUN 2024 AT 12:02

ये दिल अब उससे उकताया हुआ है
कई ख़्वाहिश को दफ़नाया हुआ है

वो जो तुम्हारी आँखों का नूर है
मेरी आँखों का ठुकराया हुआ है।।

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25 MAY 2024 AT 21:24

कश्ती हैं हम, हम पर सवार सारी दुनिया
इस पार हम खड़े हैं, उस पार सारी दुनिया।।

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6 JAN 2022 AT 22:51

पाना, खोना और खो जाने वालों की भरपाई में
सारा जीवन लग जाता है, रिश्तों की तुरपाई में।।

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28 OCT 2021 AT 0:56

फूल

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20 OCT 2021 AT 23:20

आँखें...

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4 OCT 2021 AT 22:58

दुनिया के लिए,
इस समय ठप हैं
संवाद के तमाम माध्यम

मेरे लिए,
यह तब से ही है
जब से गए हो तुम!

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27 SEP 2021 AT 10:31

मैं प्रेम में रहा
एक उम्र से, एक उम्र तक

इस दरम्यान
जिसे मैंने चाहा
या जिसने चाहा मुझे
हर किसी की नीयत
रिश्ता निभाने की रही
बावजूद इसके
हम नहीं थाम सके हाथ

उम्र के इस पड़ाव पर आकर
मैं समझा
प्रेम अनुराग और त्याग से नहीं,
भाग्य से मिलता है!!

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12 FEB 2021 AT 18:05

क्या बताऊँ कि क्या-क्या बताना था तुम्हें
अपनी आँखों से एक दुनिया दिखाना था तुम्हें।

हिज्र की रात से बस एक मलाल रहता है
बिछड़ते वक़्त गले से भी लगाना था तुम्हें।।

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11 FEB 2021 AT 7:39

एक उम्र गुज़र जाती है यार निभाने में
लिखने बैठो तो दो अक्षर का 'वादा' है ।।

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10 FEB 2021 AT 16:11

तुम्हें जब देखती हैं आंखें तो ज़रा सा दिल धड़कता है
पर, तुम्हें जब सोचता है दिल तो आंखें भीग जाती हैं।।

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