सच कहना आसान नहीं हैं,
अश्क़ है ये मुस्कान नहीं है.!
सिर्फ़ मुखौटे हैं दुनिया में,
ये कोई पहचान नहीं है.!
पल में टूटें कसमें वादे,
कायम अब ईमान नहीं है.!
धोखे खाकर सीख मिले तो,
मान लो ये नुकसान नहीं है.!
ख़ुदा के बंदे ख़ुदा बने हैं,
धरती पर इंसान नहीं हैं..!
इश्क़ से कायम है ये दुनिया,
ये झूठा ऐलान नहीं है..!
हुस्न के जलवों में सब डूबे,
स्वतंत्र तू ही गुमनाम नहीं है.!
सिद्धार्थ मिश्र
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