दोपहर की कड़ी धूप में
बारिश में भीगे बदन में
तन पिघलादे ऐसी ठण्ड में
महेनत मजदूरी से फैलाया उजियाला जग में...
कभी पेट के लिए
कभी परिवार के लिए
खुद का पेट काट काट कर
महेनत मजदूरी से फैलाया उजियाला जग में...
लहराते खेतों में
आलीशान ईमारतो के सुकून में
कारखानों के मशीनोंमें पसीना बहा कर
महेनत मजदूरी से फैलाया उजियाला जग में...
जीवन अपना यूं बहा कर भी
आखिर में पेट रहा उसका खाली
किसान भी इंसान फ़िरभी समझा उसको मजदूर ही
एक किसान ही है जिसने महेनत मजदूरी से फैलाया उजियाला जग में...-
🎂 21st July
દિવસ અક્ષય તૃતીયાનો
પવિત્ર તિથિ ગણાય જગમાં
ક્ષમા માંગી ઈશ્વર પાસ
કરીએ આજ પ્રારંભ નવ કર્મનો..
આજ દિને પરશુરામે
લીધો દશાવતાર જન્મ
વેદવ્યાસે પ્રારંભ કર્યો
લખવાને મહાભારત ગ્રંથ..
આજની પવિત્ર તિથીએ
ગંગા મૈયાનું થયું આગમન
આજ દિને ત્રેતા યુગનો
થયો જગમાં શુભ આરંભ..
ગરીબ સુદામાએ મિત્ર શ્રીકૃષ્ણને
ભોજન કરાવ્યું આજના પવિત્ર દિને
અક્ષયપાત્ર આપી પાંડવોને
આપ્યું વનવાસ દરમિયાન વરદાન..-
तू वो चाँद है....
जिसको हम पाना नहीं चाहते..
लेकिन.. तुजे देखने का.....
एक भी मौका गंवाना नहीं चाहते ..
तुम्हें दूर से चाहना मंजूर है मुझे,
मेरी इस इबादत पर गुरुर है मुझे..
तुम्हें अपने लफ़्ज़ों में छपाकर रखें मैं,
अपनी शायरी में बसा कर रखेंगे..
चाँद सा है तू. तेरी चाँदनी नही,
हम खुद को जमी बना कर रखेंगे...!!-
रूह में मेरी बस गए हो तुम इस कदर
ना शिकवा है ना कोई शिकायत है तुम पर
मोहब्बत करने की सजा पा रही हूँ खुद पर-
यादों की वो खिड़की
आती है धूप जिसमें से
कुछ बीते लम्हो की
कुछ सुकून दे जाती है
कुछ दर्द दे जाती है
मन करता है कभी
बंध कर दूँ इस खिड़की को
तभी कोई याद आकर
उसे खोल जाती है
यादों की वो खिड़की
आती है धूप जिसमें से
कुछ बीते लम्हों की
यादों की खिड़की से
जब भी बाहर देखती हूँ।
बीते लम्हों का नज़ारा
मन को मेरे घेर लेता है।
एक आँसू आकर
गालों पर टिक जाता है।
एक हवा का झोका
आकर उसे पोंछने की
कोशिश करता है।
अचानक से लब पे
हसीं सी छा जाती है।
क्योंकि मैं जानती हूँ
खिड़की पे तूने दस्तक दी है।-
यादों की वो खिड़की
आती है धूप जिसमें से बीते लम्हो की
कुछ सुकून दे जाती है
कुछ दर्द दे जाती है
मन करता है कभी बंध कर दूँ इसे
तभी कोई याद आकर उसे खोल जाती है
यादों की वो खिड़की
आती है धूप जिसमें से बीते लम्हों की-
मुझे कुबूल ये भी नहीं कि तुझे आइना देखे,
तुझे बस मैं देखूं...या मेरा खुदा देखे।-
चले जाओगे बेशक़ तुम मेरी जिंदगी से कुछ कहे बिना,
मगर इस दिल से दूर किस तरह तुम रह पाओगे ।
आएगी याद तन्हाइयों में जब भी तुम्हे मेरी,
अकेले में सिर्फ बैठके तुम आँसू ही बहाओगे ।
चाहोगे मुझसे मिलना पर मिलना नहीं होगा नसीब,
पूछेंगे सब मेरे बारे में तो गलती मेरी ही बताओगे ।
जोंगे सभी लोग अपने तुम्हारी महफ़िल में शायद,
भरी महफ़िल में रह कर भी तुम तन्हा खुद को पाओगे ।
सोचोगे मेरे बारे में तो बहोत पछताओगे खुद पर,
याद हमें करके जूठी हसीं होठों पे दिखाओगे ।
माना मिलेंगे बहोत 'उश्शाक़' तुम्हे इस दुनिया में,
पर हमारे जैसा बेपनाह मोहब्बत करनेवाला कहाँ से लाओगे ।-