Brajesh Sharma   (ब्रजेश)
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Joined 23 February 2018


Joined 23 February 2018
23 DEC 2018 AT 20:46

हाथों में थी बैलों की रास
हल कांधे साजे द्वादस मास
धरती का सीना चीरे हलधर
बलदाऊ हलधर दोनो ख़ास
ट्रेक्टर आफ़त बन करता काज
गोपाला गो वंश हुआ हृास
खेतिहर काश्तकारी में निपुण
साहूकारी कर्जा कर नाश
सोना बोता मेरा दिगम्बर
निबजेगा कर कर झूठी आस
...ब्रजेश







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2 MAR 2018 AT 17:30

वो रंगीन हैं
रंगोली नही
छुई मुई सी हैं
शर्मीली नही

बस तुम्हें हम
इतना ही जानते हैं
कि तुम गुलाब हो
दामन काँटे हैं

सुलझी तेरी बाते
फिर भी उलझते हैं
हुई दोस्ती ऐसी
जैसे गुलाब काँटे हैं
...ब्रजेश

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6 MAR 2021 AT 22:28

आजकल खिलौनों का दौर नहीं है
अब दिल से खेलते है, खेलने वाले
सारे जोकर चले गए सर्कस छोड़के
अब हर घर आते तमाशा देखने वाले

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5 MAR 2021 AT 23:06

हीरे की तरह तराशता हूँ
चले आओ मेरी ओर
तुम मैले कुचले कोयले से
थे कल तक, यकीं मानो
मैं उजियारा नहीं पर,
तुम्हें रोशन कर दूंगा
शर्त इतनी सी है मेरी
क्या मेरी चोट तुम
सह सकोगे.....?

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5 MAR 2021 AT 20:32

एक शब्द है मेरे पास
कहने को, बहरे काग़ज़ के लिए
मेरी अयोग्यता है कि 'मैं' गूंगा हूँ !
पाठक अंधे नहीं,
....पर मुझे पढ़ नहीं सकते !

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31 AUG 2020 AT 20:57

समय पर रेत को छोड़ा, घड़ी दब कर भी मुस्कुराती है...रे नादान व्यक्ति, "तेरा दिल भी तो धँसा है, दबा है; फिर भी मेरी तरह वो चल रहा है..धड़क रहा है"...क्या तुझे ख़बर है ?

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5 AUG 2020 AT 21:48

बरसो पहले किसी ने रंग बदला था
राम तो राम है, देखो ! राम ही राम है
सबको अपना बना लिया....

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4 AUG 2020 AT 22:16

छतरी होनी चाहिए,
धूप-बारिश वाली नहीं
वरन माँ-बाप वाली...
जो किसी झोंके से नहीं उड़ती !!

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24 JUL 2020 AT 22:19

यह सच है !!
कि भोजन से रक्त बनता है !!
कि उसके लिए रक्तपात होता है !!
दोनो लाल उदर के....
न इधर के
न उधर के...

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24 JUL 2020 AT 21:38

इंसान क्या है ?
शीशी का ढ़क्कन,
प्रेशर कूकर,
या पका, स्वादिष्ट भोजन !
काश !!
दृष्टिकोण विज्ञान होता
तो सबका भला होता....

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