मन में इक आस थी,लीक से हटकर कुछ कर गुजरने की
मंजिल की सीढ़ियों पर, ज्यों रखा पहला कदम। इक हवा का झोंका आया, वक्त मेरा ले उड़ा
तीरगी में दिन कटा,कल क्या होगा क्या पता
फिर रोशनी की इक झलक मुस्कुराए यूं दिखी
तीरगी को ले उड़ी, हो गये सपने हंसी
बोली मुझसे खिलखिला कर ,वक्त तेरे साथ है
भूल जा वो सारे दर्द,चल तू मेरे साथ अब
पूर्ण कर ले कार्य सब,रह न जाए कोई ग़म
तू जहां जहां चले, हम भी तेरे साथ हैं। Dr.Rekha
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