"आज़ादी"
दूसरों से आज़ादी तो पा ली हमने,
खुद से आज़ाद हम कब होंगे,
कब होंगे आज़ाद ऐसी सोच से,
जिसमें "हम" नहीं सिर्फ "मैं" है,
आज़ाद देश में हमारे, आज भी है बाल-श्रम,
आज भी है उंच-नीच, आज भी है जाती-धर्म,
रंगो को भी भेद-भाव सहना पड़ा,
धर्म के नाम पर उनको भी बँटना पड़ा,
जँहा बेटी के जन्म पर होते हैं मातम,
होते हैं आज भी भ्रूण हत्या जैसे कुकर्म,
ऐसे ही कई सोच लिए, आज भी हैं हम जकड़े हुए,
सच में आज़ादी तब मिलेगी,
जब एक सोच, दूसरे सोच से मिलेगी,
आओ एक सोच एक राष्ट्र बने,
भेद-भाव से सब ऊपर उठें...
-aRCHANA
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