Prakhar P. C. Upadhyay   (शान)
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Joined 22 March 2018


Joined 22 March 2018


फिर से इक बार मिलने को
झूठ मूठ का ही झगड़ते हैं
दुनिया के सामने दिखाने को

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तुम भूल गई क्या कितने खूबसूरत रिश्ते थे हमारे
तुम जाने किस फिराक में हो हम घूम रहे मारे मारे

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ऐसे कैसे जगह कर गई मेरे लिए तेरे दिल में नफ़रत
जानता हूं हकीकत बस तेरा भाई फैलाता है दहशत

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दिल बहुत मासूम है समझता नहीं इंसानों की फितरत
बचा हुआ है जो किसी तरह, वजह है अल्लाह की रहमत

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उसके दिल में किसी की इज्ज़त नहीं है

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धीरे धीरे लब अपने करीब आ रहे हैं
या यूं कहूं कि अपना नसीब पा रहे हैं

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काश तू महसूस कर ले मेरे गूंजते मन की चुप्पी
यकीन से कहता हूं पूरी खुशी से दे देगी तू झप्पी

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क्या तू ज़िंदगी में जान इस क़दर है मसरुफ़
कि तूने ज़िंदगी से ही कर दिया मुझे मतरूक

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19 AUG AT 23:07

मैं पंख की तरह उड़कर तेरे बालों में सज जाऊंगा
फिर भी तुझे एहसास न हो तो गाल भी छू जाऊंगा

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19 AUG AT 23:03

तब तक वादा मत करो जब तक आत्मविश्वास ना हो
और किया है अगर वादा तो फिर भरसक प्रयास करो

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