Prakhar P. C. Upadhyay   (शान)
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Joined 22 March 2018


Joined 22 March 2018

बाबू मुशाय ये तो हर रात की कहानी है
सबकी कभी ना कभी फूटती जवानी है

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कुछ ना कुछ तो था ऐसा जो निषेध था
वर्ना हम दोनों के बीच बंधन अभेद्य था

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तुमने ना दिया साथ, तो ये सफर आखिरी रहा
कब तक चलूं मैं अकेला, काफी है जितना सहा

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तुम्हें चाहते रहने का जज़्बा तो कायम रहेगा
तुम्हारी बेरुखी जब तक रहे मन सहता रहेगा

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वो इश्क़ करने में बड़ी माहिर है
पर मेरी ज़िन्दगी से गैरहाजिर है

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रिश्तों का आधार अब यह है कि कौन काम आता है
ऐसे मतलबी लोगों का व्यवहार तबाही ही मचाता है

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बर्बादी का कारण बना झूठा इश्क़ तेरा
ये बोल पल्ला झाड़ा कि रिस्क है मेरा

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सत्य स्वीकारना जैसे प्रभु को स्वीकारना है
सत्य का विरोध तो मानो स्वयं से हारना है

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4 JUL AT 22:24

रात कहती रही कि आ जाओ दोनों और करीब
शायद हो जाए मिलन अगर होगा तुम्हारा नसीब

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4 JUL AT 21:57

एक बारिश ऐसी हो जिसमें हम भीगें साथ साथ
तुम्हारे ही हाथ में ये है कि बन जाएं ऐसे हालात

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