Prakhar P. C. Upadhyay   (शान)
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Joined 22 March 2018


Joined 22 March 2018

हमारा कोई बहाना काम ना आया
उसका कोई बहाना जान ना पाया

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वो मासूम सी हंसी मेरे दिल में बसी है
यूं समझिए कि जान आफ़त में फंसी है

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जो दूर करे मुझ जैसे सूरज की तपन वो ही है मेरी चॉंद

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माना कि मैं दर-ख़ुर नहीं हूं तेरे लिए
पर दरवाज़े तो खुले रख तू मेरे लिए

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तेरे संग सनम हो जाए एक कट चाय
पसंद हों तुझे तो पकोड़े भी हो जाए

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तेरी मुस्कान के आगे सनम सब हार जाता हूं
तू नहीं मिलती तो सोच कैसे मन मार पाता हूं

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दिल की गहराई से तुझे मैं चाहता हूं
तू बस हां कह दे इतना ही चाहता हूं

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एक ही है जीवन आधार, भूलो मत शिष्टाचार
ग़र करोगे तुम अहंकार, पाओगे बस अंधकार

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शीलू तेरी मोहब्बत मेरी तो जन्नत बन जाएगी
तू कर ले बेझिझक अपनी ज़िंदगी बन जाएगी

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करते रह गए हम बस हंसी ठिठोली
रह गई बंद मोहब्बत की हमजोली

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