Radhika Rathore
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उसने पहले मुझे देखा और फिर मिरी आँखों को,
मेहंदी की बारी तो बहुत देर बाद आयी ।।
✍️राधा_राठौर♂-
डालों से जब-जब पत्ते झड़ जाते हैं।
घटती है तब नींद,..ख्वाब बढ़ जाते हैं।
वो दिन भर बस हमसे लड़ता रहता है...
जिसकी ख़ातिर हम सब से लड़ जाते हैं।।
✍️राधा_राठौर♂-
तुम मेरी बात करो....
हम तुम्हारी बात करते हैं....
आओ न हमारी बात करते हैं....
✍️राधा_राठौर♂-
हम चाहते तो तेरे शहर में मशहूर होने जा सकते थे।
लेकिन हमने रक़ीब के शहर में जाना बेहतर समझा।।
हम चाहते तो हम भी हिज़्र में,आवारापन ला सकते थे।
लेकिन अम्मा के सपनों को हमने सजाना बेहतर समझा।।
हम चाहते तो बना-बनाया महल तो हम भी पा सकते थे।
लेकिन हमने एक छोटे से घर को बनाना बेहतर समझा।।
हम चाहते तो किसी और की हम बाहों में जा सकते थे ।।
लेकिन बस तेरी बाहों में हमने आना बेहतर समझा।।❤
लोग हमें कहते थे हमको जल्दी नज़र लग जाती है।।
तभी तो हमने सबसे अपनी DP छुपाना बेहतर समझा।।
✍️राधा_राठौर♂
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बस यही तो मैं अक्सर किया करती हूँ।
तुझको अक्सर ही मैं लिख लिया करती हूँ।
जब कलम सताती है न तेरे इंतज़ार की ...
शब्द यादों के उसको दिया करती हूँ।
✍️राधा_राठौर♂-
इक तेरी तलब छुड़ाने के लिये मैंने..
"चाय" को तलब बनाया है।
तेरे घर की तरफ तक न जाऊं इस लिये मैंने
"तलब" को ही अपना घर बनाया है।।
✍️राधा_राठौर♂-
उसकी ज़ब्त का क्या ही अंदाजा लगाओगे तुम।
उम्मीद भी नहीं थी के दुनिया मे आ पाओगे तुम।
जान हथेली पे ले कर तुमको जन्म दिया जिसने ....
क्या उसको सच में वृद्ध आश्रम छोड़ आओगे तुम??..
✍️राधा_राठौर♂-