Anjali Jain   (©shaili......✍)
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Joined 28 July 2019


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22 MAY 2021 AT 17:03

हित मित मिश्रि सम्मिश्रण,साहित्यों के सार,
नौ रस नीके बलिहारि,कि करें काव्य विस्तार।।

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22 MAY 2021 AT 8:32


प्रार्थना का
मटमैला....केनवास...

त्राहि माम् त्राहि माम्

रचना अनुशीर्षक में....

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21 MAY 2021 AT 11:46

चंद्रमुखी चाँदनी बिकी अमीरों को सदा से,
अमा की रात हो जैसे गुज़री इक सजा से

बोझ सूरज पीठ पे,चाँद खाली चकला दिखाई देता है!!

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20 MAY 2021 AT 14:05

दरक गयी झुर्रियों सी
अनुभवी मृदा संपदा,
विद्वता,भौतिकता,
आधुनिकता,पलायनता
इस मृदा अपरदन के
मुख्य हेतु हैं!

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20 MAY 2021 AT 9:08

बाधाओं के पग पे पग,चलें घाम दर गाँव
पगडंडियों पे पग और आएँ आम तरु छाँव,

श्वासें पाएँ मंजिलें,साँझ ढली पश्चिमी ताव!!

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19 MAY 2021 AT 16:57

छाया तरु अरु मात की,बडभागी के होय।
मूल मूल्य सज्ञानता,कभी न मति को खोय।।
19.5.21

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19 MAY 2021 AT 9:34

तंत्रिका तंत्र में
अथक विद्युतीय रक्त संचार,
राजतंत्र में,
राजकीय अंध भक्त प्रचार,
गणतंत्र
गण पोषकों का
समूहों में पीठ पीछे प्रहार,
परतंत्र
बेड़ियों का कठोर अंलकार

एक सुलझा प्रिय शब्द,
अनुकरणीय हूँ मैं उसकी
जो है 'स्वतंत्र'
संचार वीतराग विज्ञानता
है सौख्य सत्य का मूलमंत्र
देह से आतम हो केवल स्वतंत्र!!
19.5.21

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18 MAY 2021 AT 19:55

एक चयन शांति का÷

क्रोध,
क्रोधी के
कांतिहीन धूल धूसरित
पैरों में खनकती पाज़ेब सा,

मौन,
मौनी के
वीणा तार अनुगुंजित
अधरों पे वीणा की झंकार
और कंठ के हार सा

प्रत्युत्तर,
रसोई घर के लौह बर्तन
चुभती आवाज़
अनसुनी,
प्लास्टिक के बर्तन
सबके दिल पर राज़!!

पारदर्शिता भी एक अंलकार है न!

18.5.21

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18 MAY 2021 AT 9:05

संग्रह वृत्ति ÷
शब्द,भाव,अक्षुण्ण वस्तुएँ
सुगंध का कद बौना और
दुर्गति का जर्जर दुर्ग निर्माण है,

सर्वाधिकार सुरक्षित
कविताओं का पुष्प गुच्छ
पुट सम्पुट बिन मूल्य
जीवन मूल के प्रतिनिधियों
स्वच्छ जल,
स्वर्णिम आगत कल
मुक्त हवाओं के ज़र्रे ज़र्रे
तुम सब हो निर्दल,
मेरा सर्वस्व भाव समर्पण
क़लम का न करती तर्पण
बस सुगंधित करो नभ तल
बरसो घर घर तपते बादल
सूखी ज़मीं,ज़मीर तल थल
अजीव को प्राप्त निर्वाण है।!
18.5.21


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17 MAY 2021 AT 14:15

विकलांग को
कृत्रिम अंग का दान
वैशाखी,चलित कुर्सियाँ
वर्षों से प्रदान की जा रहीं होंगी
पद लोलुप,क्षतिग्रस्त
टूटी मखमली कुर्सियों के
वरिष्ठ नेता साधकों की ओर से,

रंगमंचन प्रारंभ÷
प्रथम पट,
भूख की सुलगती अंगीठी में महुआ उबलती,
चर्म तो जैसे पीटकर पापड़ हुई,
मित्रों भाईयों बहनों मीठी वाक् पटुता,
तीखी मिर्ची मसाला या ढावे का कटु अचार,

रचना अनुशीर्षक में......

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