एक पेड़ था बूढ़ा
घर के सामने
तने बेतरतीब फूले थे
जैसे पीलपांव हो उसे
दिखता भी बेडौल था
पर बच्चों से उसका कौल था
उसके तुम्बड़ पर पांव रख
चढ़ जाना आसान था
इस बात का उसे गुमान था
वही पेड़ कट गया आज सबेरे
जिस पर उतरते थे चाँद सितारे-
सड़क बन जाने से,
पगडंडियों का महत्व कम नही हो जाता !
किसी मुकाम पर पहुंचने के बाद
उन लोगो को कभी मत भुलियेगा
जो थोड़ा ही सही,
पर कभी आपके काम आए थे।-
वक्त और हालात को दोष देना ठीक नहीं,
प्रतिस्पर्धा इतनी है कि बहुत जल्द ही,
आउट आॅफ डेट, आउट आॅफ फैशन
होजाता है, चाहे सामान या इंसान ।।-
आत्मनिष्ठ बन अंर्तमन में
ध्यान धरे जो योगी है।
सरल सहजता का अधिकारी
वसुधा को उपयोगी है।।-
शब्द है बेधी तो कहीं उपयोगी ।
कीजिए प्रयोग संभलकर,चढ़ जाती हैं वेदी ।।
ना आए काम फिर दुआ, ना हकीम की दवा ।
शब्द बेधी बाण लगे जब,मरीज़ हो जाए अधमरा ।।-
हम टांकते हैं
शब्दों में
ख्याल के पसारे पांव
जमीं के सुशोभित
मृदा की पुकार को
मन के उभरते द्वंद
में फंसी
अभिलासाओं के
चीत्कार को
प्रकृति के
टूटते कमर
सर से सरकते छांव को
पीड़ा में डूबी हर श्रृंगार को
पीहर के बनी छाड़न
ससुराल में दूंढती प्यार को
मांग के सिंदूर को
कोख के चीत्कार को
हम टांकते हैं
शब्दों में
धूप,छांव बरसात को-