जिन्दगी का वो सुहाना कल,
अचानक याद आगया जब नींद से बोझिल हो रहे थे पल ।
घर से करीब 1200 किलोमीटर दूर,
जब बिहार से मध्यप्रदेश जान पड़ा सुदूर ।
जुलाई का महीना था, नौवीं कक्षा में छः माह पढ़ चुका था ।
जब छोटे से शहर सिवनी में नौवीं कक्षा में दाखिला हुआ था ।
भाई साहब बॉटनी के लेक्चरर, बेचलर ।
यहाँ भरापूरा परिवार, वहाँ अनजाना शहर ।
एक धनात्मक पहलू था मेरा,
छः महीने का नौवीं का कोर्स था पूरा ।
स्वाभाविक था कक्षा में गणित में नाम था मेरा ।
10 सहपाठियों का समूह बना,
परिवार रहित डेरा था यहीं होते थे जमा ।
समूह में पढ़ाई होती, अच्छे विद्यार्थियों में गिनती होती ।
कैसे भूल सकता हूँ वह छोटा सा शहर,
जहाँ परिवार सा भरपूर प्यार मिला ।
अब तो सिर्फ यादें हैं 72 में शहर छूटा,
फिर जाने का मौका ही न मिला ।
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