संत असंतन्हि कै असि करनी।
जिमि कुठार चंदन आचरनी॥
काटइ परसु मलय सुनु भाई।
निज गुन देइ सुगंध बसाई॥
_श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)-
खनक-खनक कर सिक्कों ने
नोटों को दे दी गाली।
आरोप लगाकर, उन्हें चीखकर
साबित किया मवाली।।-
अभिशप्त,
ये साँसें...;
इन्हें लेकर करूँगा क्या?
ओ देवता!
तुम ही इन्हें
उपहार में रख लो।-
स्वागत में मैले मन-आँगन
शुचि गंगाजल से धो डालूँ
रूखे मन सिंचित कर-कर के
तारों की फलियाँ बो डालूँ
स्वीकृत यदि पुनः मिलन प्रियतम!
संबोधित कर दूँ सावन को
नामांकित हृदयस्थल कर दूँ
संभाव्य मेल मनभावन हो॥
】अनुशीर्षक【-
करुणार्द्र कंठ से वाणी के
संतुलित शब्द सब हीन हुए;
नभ में बसने वाले उडगन
अत्यल्प काल में दीन हुए।
रो पड़ा चाँद मेरे दुख से
कुछ यादें बड़ी कसैली थीं;
पावस विभावरी छाई थी
चंदा की आँखें मैली थीं॥-
The father of a nuclear family is just like a mum for kids, merely he doesn't beget
and suckle them.-
जब, युद्धों को त्याग मछलियाँ
शांति गीत को गाएँगी;
आहार बनेंगी गीधों का
या काटी घीसी जाएँगी।।-
शिव! मौन रूप में बैठे साधक बन शैल शिखा पर,
शोभित होती हैं गंगा मस्तक पर सजे निशाकर।-