ढाती है सितम, उसूलों पर चलने वालों पे
दुनिया है महज, तलवे चाटने वाली की
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Naturally Introvert, occasionally Extrovert
सब कुछ सभालते-संजोते,कितना बिखरती जा रही हूं।
देखो, मैं कितना समझदार बनती जा रही हूं।।-
चाहिए तो बस दो मीठे बोल,चार मीठे कौर
बनाने को किसी को अपना
फिर कर चाहे जितना लहूलुहान
या मारो खंजर मेरी जान-
आदमी नही वो,भयावह,बोले जोर से l
अपितु हैं वो,जो धीरे से घोले जहर,कर्ण पटल की ओट मे ll-
साल गुजरने में,कहा साल लगता है l
घड़ी-घड़ी जुडकर ही तो,हर दफा नया साल बनता है ll
बीते सबक और नई उम्मीदों के साथ, बस अंक ही तो बदलता है l
तर्को के तारों में उलझी,जिंदगी के व्याकरण-व्याखायो को,कहा विराम लगता है ll
खैर चलो,2023 के अंधेरों से 2024 के उजालों का आगाज करते है l
फिर से,शुरू से,नए साल की शुरुवात करते है ll-
सहारा समाधान क्यू ,तीसरे से लेना है पड़ता
जब शुरवात दो हंसो का जोड़ा है करता-
टूटा जब अंदर तलक हो कुछ,तो शोर नही सुन पाएगा l
देखने वालो को बस,चेहरा उदास ही नजर आएगा ll
मौका आखिर किसी को कितनी बार दिया जाएगा l
गलतियों तक तो ठीक है, चालाकियां माफ़ कबतक कर पाएगा ll-
ज्यादा गहरे रिश्ते सही नही होते l
वक्त के साथ चेहरे भी वही नही रहते ll-