साल गुजरने में,कहा साल लगता है l घड़ी-घड़ी जुडकर ही तो,हर दफा नया साल बनता है ll बीते सबक और नई उम्मीदों के साथ, बस अंक ही तो बदलता है l तर्को के तारों में उलझी,जिंदगी के व्याकरण-व्याखायो को,कहा विराम लगता है ll खैर चलो,2023 के अंधेरों से 2024 के उजालों का आगाज करते है l फिर से,शुरू से,नए साल की शुरुवात करते है ll
टूटा जब अंदर तलक हो कुछ,तो शोर नही सुन पाएगा l देखने वालो को बस,चेहरा उदास ही नजर आएगा ll मौका आखिर किसी को कितनी बार दिया जाएगा l गलतियों तक तो ठीक है, चालाकियां माफ़ कबतक कर पाएगा ll
भरोसा,एक कीमती शब्द है भारी l क्या हो जब,टूटने की हो आपकी बारी ll उम्मीदें,सहारा देकर ना करिए एहसान l हक नही है आपको,हसा कर रुलाने की वजह देने की जनाब ll