अल्फाज लिए फिरता हूं अहसासों की मंडी में ,
कागज काले करता हूं इंसानों की बस्ती में।-
क़िस्मत के भी क्या कहने जनाब...
वक्त वक्त पर रंग बदलती है ये
मानों जैसे होड़ लगी हो इसकी इंसानों से..!!!-
हम लोग भी कितना अजीब होते हैं,
निशानों को संभाल कर रखते हैं,
और इंसानों को खो देते हैं-
जुबां से नहीं, दिल की दिल से कह के देखो,
चहचहा उठेंगे, ये इंसानों से कहीं बेहतर हैं !-
खुदगर्जी में बहकना और खुद-दारी में तलबे चाटना,
ये इन्सानो की फिदरत भी कमाल की है,-
उम्मीद इंसानों से नहीं तुजसे हैं
ख़ाब और होंसला भी ज़िंदा तुजसे हैं
Paanee
Eco friendly Ganesha murti made by
GOOGLOO ACADEMY-
फरिश्ते ही होंगे
जिनका मुकम्मल हुआ इश्क ,
इंसानो को तो हमनें
बर्बाद होते देखा है ।-
अपनापन एक छलावा है इंसानों की नगरी में,
यहाँ अपना कहने वाला कभी अपना नहीं बनाता..-
इंसानियत भी इंसानों पर हंस रही है
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इंसानियत भी इंसानों पर हंस रही है
देख कर उस की हरकतों को क्या इतनी गिर गई
इंसानियत आज इंसानों में
जो एक बेजुबान निर्दोष की जिंदगी से खेल गए
और हम बस मिसाल दिया करते है
कि इंसान ऐसा है वैसा है
क्या वाकई में इंसानों में
आज कोई इंसानियत है
है तो कहां खो गई
इंसानों की इंसानियत तो
उसी दिन खो गई जिस दिन
कभी लड़कियों को साथ
तो कभी बच्चियों के साथ
मौत का खेल खेला करते हैं
आज इंसान है पर
इंसानियत नहीं रहीं आज-