My Word My Quotes   (©® Ritu Yadav)
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Joined 18 December 2018


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5 MAY AT 14:27

ज़िंदगी के सफ़र
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ज़िंदगी का सफ़र कभी किसी के लिए ठहरा नहीं है
इस सफर में आखिरी तक मुसाफ़िर मिलता नहीं है

प्रारंभ से अंत तक यहाँ सब कुछ स्वयं तय करना है
वक़्त की तरह ज़िंदगी के सफ़र का भी चेहरा नहीं है

सफ़र के ये आड़े तिरछे रास्ते इतने आसान नहीं होते
कभी कभी तो ज़िंदगी के सफ़र में यहाँ सवेरा नहीं है

हाल-ए-हालात हमें जीना भी और मरना भी सिखाती
इस ज़िंदगी के सफ़र का स्वाद कभी भी फीका नहीं है

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5 MAY AT 14:20

इत्तिफ़ाक़ से आज एक ओर इत्तिफ़ाक़

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5 MAY AT 14:01

स्याही का हर एक रंग
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कभी हंसी का तो कभी ग़म का रंग रहता है
स्याही का हर एक रंग कुछ न कुछ कहता है

अपने आप में बहुत कुछ कह जाती ये स्याही
हां कोरे पन्नों पे तमाम अल्फ़ाजों का आईना है

ये स्याही न जाने कैसे नजरिए को भाव लेती
मचलती हुई एक एक बूंदों का ये इक दरिया है

अब यहाँ कौन समझता स्याही की क़ीमत को
स्याही सिर्फ स्याही नहीं वक़्त का एक चेहरा है

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2 MAY AT 1:33

आइना नहीं हक़ीक़त देख रहा

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2 MAY AT 1:23

किसी का आशियाना तो किसी की सांसें टूटी
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यहाँ तो हर कोई अपने अपने हिसाब का पक्का होने लगा
सुना है आहिस्ता-आहिस्ता वो जवाब का पक्का होने लगा

कल किसी का आशियाना तो आज किसी की सांसें टूटी है
यूं ही नहीं हर कोई अपने अपने ताब का पक्का होने लगा

मालूम होती है ये किसी के ख़ामोश ज़ख़्मों की कहानी है
इंसान ना जाने आज कौन से ख़्वाब का पक्का होने लगा

एक अलग सा ही धूंआ चारों तरफ धीरे धीरे से उठ रहा है
हां अब तो हर कोई अपने ख़ून-ए-नाब का पक्का होने लगा

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1 MAY AT 15:34

इंसानियत बजारों में मिलती

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1 MAY AT 14:41

रातों का अफ़्साना
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मेरे साथ हर बार एक क़िस्सा हो जाता है
पता नहीं क्यों वो मेरा हिस्सा हो जाता है

रात की अंजुमन में ये कैसी गुफ़्तुगू हो रही
मुझे तो मेरे हर क़िस्से पे भरोसा हो जाता है

मैं उसे मन का भ्रम कहूं या फिर कुछ और कहूं
गुजरती रातों का अफ़्साना रोज़ाना हो जाता है

आजकल अपनी ही कहानी में उलझती जा रही
क्या मेरे साथ बातों का कोई बहाना हो जाता है

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29 APR AT 14:01

नया तमाशा शुरू हो गया

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29 APR AT 13:30

नई जंगों से मुलाक़ात होती है
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तन्हा रातें में अक्सर अश्कों से मुलाक़ात होती है
यहाँ तो आए दिन ही ज़ख्मों से मुलाक़ात होती है

अब तोहफ़ों में मिलने लगा गमों का ताना - बाना
हां ज़िंदगी की नई - नई जंगों से मुलाक़ात होती है

बहते अश्कों की ख़ामोशी का एक अलग ही शौर
मेरी बदलते हुए चेहरों के रंगों से मुलाक़ात होती है

अब सरेआम क्या ही ठोकरों की दास्तां का सुनाऊं
ज़माने की इस भीड़ में यूं ग़ैरों से मुलाक़ात होती है

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29 APR AT 13:11

इंतजार की क़ीमत बताने चलें हो

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