जब इंसान बहुत कुछ
कहना चाहे तो उस वक्त
आँखें दिल की वकील
बनकर लोगों की अदालत
में जज़्बातों की वकालत
और बयानबाज़ी करती हैं...-
Writer by heart....✍🏻
My birthday falls on 28th... read more
जो देखा है मेरे महबूब की आंँखों ने
थोड़ा नटखट सा, थोड़ा नन्हा सा
पल रहा है जो धीरे - धीरे अब
मेरे भी सपनों के आगोश में...
नाज़ुक हैं जिसके हाथ पैर
छुईमुई सी है जिसकी हंँसी...
बाहों के पालने में सोता हुआ
वो कितना मासूम सा लगता है
अपने काजल का टीका मैंने
उसके माथे पर लगाया है...
बांँध कर उसके बाज़ू पर ताबीज़
मैंने उसे बुरी नज़रों से बचाया है...
_Khushboo Rawat
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दूर तलक मेरी इन आँखों को
सागर के किनारे नहीं दिखते,
रब और महबूब के सिवा अब
मुझे कोई सहारे नहीं दिखते...-
बड़ी हो गई थी मैं जाने कब की पर बचपना कहीं बाकी था,
छूट गया बहुत कुछ पीछे बस अपनों से बिछड़ना बाकी था...
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Your warmth helps
me in my growth...
I shine unbelievably
with your brightness...
My roots are going
deeper and deeper...
Your rays of love are
essential for my life...
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....मन....
कई खुशियों और इच्छाओं की हत्या करके
कुछ अपनों की प्रतिष्ठा के बोझ को संभालते
और फ़िर चुपके से अश्रु बहाते हुए हृदय के
हज़ारों पीड़ाओं को सहन करने के पश्चात भी
यदि अधर हौले से मुस्कुरा उठे तो समझ लेना
कि
प्रेम का अमृत पान कर चुका है ये व्याकुल
मन...
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उतार दिए मैंने पंख पुराने
एक नए सफ़र की तितली हूंँ,
अहिल्या सी पत्थर थी मैं
अब जाकर तो पिघली हूंँ...
हर कतरा सब्र का समेट कर
अरमानों की कटोरी में रखा है...
पूरा करके सदियों सा लंबा इंतज़ार
नए इंतज़ार की राह पर निकली हूँं...-
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हर्फ़ हर्फ़ में लिपटा था महज़ हर्फ़ होने का एहसास,
जुड़ा जब दिल का ताल्लुक तुमसे मेरे महबूब!
बे-मा'नी लफ़्ज़ों सी हमारी ये ज़िंदगी शायरी हो गई...-
जब बढ़ती उम्र के इरादों
से हम डरा करते थे...
जब बढ़ती उम्र हमारे
इरादों से डरा करती है...-
मुरझाई सी ज़िंदगी की पंखुड़ियों में अब जान है तुमसे,
फ़िर से ज़िंदा हुई इस "ख़ुशबू" का स्वाभिमान है तुमसे..-