Khushboo Abhishek   (Khushboo Rawat)
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Joined 10 April 2018


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16 JUL AT 12:07

मैं इस कदर चाहूं तुझे ऐ मेरे महबूब !
तेरी शख़्सियत को इबादत सा असरदार बना दूं,
तेरी एक झलक पाने को तरसे ये दुनिया
मैं मेरे लफ़्ज़ों से लोगों को तेरा तलबगार बना दूं...

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16 JUL AT 11:45

पार कर ली जाने कितनी ही सरहदें
मैंने अब तक के इस सफ़र में,
पर आख़िर में ये "ख़ुशबू" फंस के रह गई
तेरे गालों के हसीन भंवर में...

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16 JUL AT 8:17

सोचती हूं क्या कहूं तुझे?
इश्क़ में तुझे कौन सा नाम दूं?
चांद...सुबह आते ही छुप जाएगा,
सूरज...शाम आते ही ढल जाएगा,
फूल...कुछ पलों में ही मुरझा जाएगा,
चल...मैंने तेरा नाम " ज़िंदगी " रख दिया...
जब तक ना आएगी सीने में सांस आख़िरी
तब तक तो तू मेरा साथ छोड़ नहीं पाएगा...

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15 JUL AT 16:04

स्पंदनहीन हो चुका था परंतु
"उनके" प्रेम का अमृतपान
करके वो पानी नहीं रहा अपितु
"पावन जल" बन गया जिसकी
हर एक बूंद से उठने वाला संगीत
मेरी मृत भावनाओं के लिए
संजीवनी प्रमाणित हो चुका है
जो मुझे हर क्षण "उनके" मेरे हृदय
में होने की अनुभूति कराता है...

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5 JUL AT 23:51

सुनो कृष्ण! मेरी हर नादानी पर मुझे
चुपचाप मुस्कुराते हुए देखते हो...
कोई नियम नहीं बनाया तुम्हारे लिए मैंने
पर तुम मुझे हर नियम से चाहते हो...
कुछ भी बोल जाती हूँ तुमसे दिल खोल के
तुम मुझे फ़िर भी कुछ नहीं कहते...
कहो तो इक बात है बोलूं तुमसे
वो क्या है कि हमेशा बिन मांगे दिया है तुमने...
मेरी हैसियत से ज्यादा दिया है मुझे
पर आज झोली फैलाई है तुम्हारे सामने...
इन होठों से कुछ नहीं कहूंगी मैं पर
इंतज़ार इसके भरने का करूंगी...
वो इंतज़ार की घड़ियां कितनी लंबी होंगी
वो मेरी गुनाहों की गिनती बताएगी तुम्हें...
फ़िर भी मैं इंतज़ार करूंगी

मैं इंतज़ार करूंगी....

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3 JUL AT 17:55

गुनाह हो सकता है
मेरे भी हाथों,
कटघरे में खड़ी हो
सकती हूंँ मैं भी,
सज़ा मिल सकती है
मुझे भी बेशक,
जीता जागता सबूत है
इसका मेरे महबूब
तेरी नाराज़गी...

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20 JUN AT 23:16

ऐ ख़ुदा! ये कैसी है तेरी मज़ाहिर-ए-ख़ुदाई,
महबूब ऐसा दिया जो सुन न सके मेरी बुराई...
मंज़ूर है उसे दुनिया भर के रंज-ओ-ग़म खुशी खुशी,
अपने सीने से लगा ली है उसने इश्क़ में रुसवाई...


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19 JUN AT 4:22

इक शेर मुझे उसके लिए भी बड़े ही शिद्दत से फ़रमाना है,
मयख़ाना भी वही और वही सबसे बेहतरीन दवाख़ाना है...
नशे में डूबो दे वो "ख़ुशबू" को, इलाज भी शफ़क़त से करे,
जी हांँ इतना खूबसूरत मेरे महबूब का हौले से मुस्कुराना है...




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18 JUN AT 4:56

जीने की हसरत है मुझे भी औरों की तरह मेरे महबूब!
पर ना हो शमिल जिसमें तू ऐसी मेरी ज़िंदगी किस काम की...

ख़्वाब लेकर उठती हूँ इन आंँखों में कि थक कर चूर होना है मुझे,
तू मुझे अपनी गोद में न सुला ले फ़िर मेरी मांँदगी किस काम की...

बिसरा दूं जेहन से एक पल के लिए भी तुझे तो सांस न आए,
मोहब्बत को ख़ुदा ना बना पाऊं फ़िर मेरी बंदगी किस काम की...

राज करता है तू इस कमबख़्त दिल पे मेरे जाने कितने अरसे से,
तू मुझे अपने इशारों पे न चलाए फ़िर तेरी नामुइंदगी किस काम की...

मुझे हौसला दिया की मैं भी कुछ ऊंचा कर जाऊं इस जहान में,
तेरे ख़ातिर सारी कायनात से ना टकरा जाऊं फ़िर मेरी पायंदगी किस काम की...

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17 JUN AT 16:41

एक स्त्री के लिए अगर श्मशान का दृश्य हृदय विदारक हो सकता है तो एक पुरुष भी प्रसूति कक्ष में शिशु को जन्म देते हुए देखकर रो पड़ता है। दोनों ही अगर किसी स्थिति में बेहद मज़बूत हैं तो किसी स्थिति में अत्यंत कमज़ोर...

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