दयावान धर्मवीर कर्मवीर
-
मुझे कुरेदा तो इंसां के चंद निशाँ मिलेंगे
मैं बहुत से हादसों से बना इक पत्थर हूँ-
यूँ तो इंसानों ने बदले हैं फ़ैशन बहुत
पर मुखौटा हमेशा ही पसंदीदा रहा है-
आईने मे देखो सुरत।
और अतीत मे देखो सीरत।
1.एक मे चेहरे की।
2.दुसरे मे नीयत की।
दोनो मे सच्चाई नजर आते है।-
वक़्त को भी बेपर्दा हो जाने दो
जो घाव है उसे और निखर जाने दो
गुनहेगार तो सब हैं यहां
पहले इंसान को इंसान बन जाने दो।।
-
वे लिखते हैं हिंदू-मुस्लिम,
ठाकुर, बामन और पठान।
सब इक दूजे पर हँसते हैं,
जैसे ऊदई वैसे भान।
धरम-जात औ' वंश घराने,
बस इतनी सबकी पहचान।
जी करता है काट गिराऊँ,
धर्म-जात वाली चट्टान।
कागज-पत्तर फाड़के फेंकूँ,
सब बँटवारे के सामान।
नाम के खाने में लिख डालूँ,
केवल और केवल 'इंसान'।-
उसका दुख-मेरा सुख, ये खेल इंसा का यूँ गंदा होता है।
अपना समझे जो गैरों का दर्द, वो खुदा का बंदा होता है।
आजकल वो देखता है, सूरत भी हैसियत भी
"कौन कहता है" कमबख़्त, प्यार अंधा होता है।
दूसरों की जिंदगी से खिलवाड़ इश्क के नाम पे
अब तो ये बस, जिस्म-जिस्म का धंधा होता है।
मुमकिन नहीं मुकम्मल हों, सारे ख्वाब "नवनीत"
सच्ची मोहब्बत का हिसाब, थोड़ा मंदा होता है।
यूँ तो खुद का दफ्तर, आलीशान बनाता है वो नेता
पर बात जब मंदिर बनाने की हो, तो चंदा होता है।-
उससे कितना नज़दीक था वो कूड़ेदान
फिर भी साफ़ दीवार पर थूक गया इन्सान-
लोगों से मैं क्या बातें करू आज़ादी की,
जब यही वजह बन जाते हैं किसी की बर्बादी की |
क्यूं ये सब जान कर अंजान रहते हैं ,
हैं तो ये जीते-जागते इंसान,
फ़िर भी ये ख़ुद को बुद्धिमान कहते हैं |-