कभी किसी याद में
यूंही बस उन्माद में
कभी किसी बोझ में
यूंही किसी खोज में
कभी है वजह भीतर ही अपने
यूंही खुली आँखें देखे जो सपने
कभी वो सबब ठहर जाता बाहर
कभी बिन वजह ही जाती है नींद
जो रूठे, न माने आती हुई नींद
बस यूंही उचट जाती है नींद
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Prateek Tiwari
(प्रतीक तिवारी (तलाश))
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मेरा जीवन .....
कुछ भी तो नहीं बतलाने को,
ना ही कुछ समझाने को,
जीवन मेरा है खुली किताब,
है कुछ... read more
कुछ भी तो नहीं बतलाने को,
ना ही कुछ समझाने को,
जीवन मेरा है खुली किताब,
है कुछ... read more
Joined 19 November 2017
22 JUL AT 23:30
29 JUN AT 17:40
हम जो खुद के हो लिए साथ तो किस बात के तन्हा
खुद से कर ली सारी बात तो किस बात के तन्हा
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5 JUN AT 23:56
तन्हाई का शोर भाने लगा अब
जो मिला मौन से, चिल्लाने के बाद
बातें भी खुद से ही होने लगी हैं
जो मिला न जवाब बतलाने के बाद
अब तो ख़ुद को भी मैं सच नहीं मानता
जो मिला आईने में दिखलाने के बाद
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6 FEB AT 12:51
जिंदगी तुम मेरे काम न आई अगर
मौत से दोस्ती हो जाएगी मेरी
मरना चाहता है कौन कमबख्त यहां पर
मुझसे दिल्लगी हो जाएगी तेरी
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