#आह्वान #
निष्पक्ष लिखो,कुछ क्रांतिपूर्ण,
कुछ ममतामयी,कुछ कालजयी,
कुछ लिखो भयंकर कालकूट,
फिर से जनता का राज लिखो।
तुम प्रेम लिखो श्रृंगार लिखो,
या लिखो विरह की निज गाथा,
कर जीवन के सारे दृश्य अलंकृत,
'गर मिले समय क्षण भर का,
तो वंचित की बात लिखो,
फिर खेतों की ओर मुड़ो,
फिर से किसान की बात लिखो,
कुछ क्रांति पूर्ण,कुछ ममतामयी,
निष्पक्ष लिखो कुछ कालजयी।
'गर पकड़ी है कलम हाथ में,
तुम समाज की बात लिखो,
दें आवाज यूं दग्ध हृदय को,
कि हाकिम की जड़ें हिलें,
जब-जब हो कत्ल तंत्र का,
नई सत्ता की नींव लिखो।
कुछ क्रांति पूर्ण,कुछ ममतामयी,
निष्पक्ष लिखो कुछ कालजयी।।
#गौरव #-
रवि वीरोदय
पंक के सहस्र दल
पंकज का मानो
भाग्योदय....
क्रम से बहुप्रतीक्षित भी
मनुज प्रमाद वश
खोता जा रहा है
पुरूष से भेंट का अवसर,,
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पंकज ने मानो साक्षात्
आह्नान किया.......
मिला निराकार से
प्रतिदिन पूज्य पर्व महोत्सव
संध्या विदाई बेला में
आरति....
अतिशय पुण्य बडभागी
अहोभाग्य!
पंक के पंकज का
और.....जो है निद्रा देवी
के प्रति दर्शन में मूर्छित,,,
दुर्भाग्य के अंकों से अंकित,,
धन्य...धन्य...हो!!मनु!!
(*पुरुष-आत्म तत्व)-
नहीं कीजिये अपनी दुर्भावना से
किसी भी नारी का अपमान
हर कन्या में माँ दुर्गा का वास
करिये दूर कलुषित मैल मन से
श्वेत हृदय से कीजिये वंदना
आईये शुचि मुख से करें
माँ अम्बे गौरी का आह्वान...!-
अहो नीलकंठ भस्मांग महाकाल शम्भो सुनो !
हे काल के कराल, विरुपाक्ष मेरी विनती सुनो !!
हूँ मैं निढ़ाल, विस्मित, बेहाल, मेरी विपदा हरो !
हे उमापति त्रयंम्बक व्योमकेश अब हुँकार करो !!
चहुँ ओर तमराज है, भयावह यहाँ विहान है !
हताहत है यह सृष्टि, आक्रांता बना इंसान है !!
आह्वान करती निजसुता, पधारो धरती पर पिता !
त्रासित हूँ अधम राज से, खल, निकृष्ट, तमिचर से !!
है कलुषित सरि, क्षोभित उर्वी विनय सुन लो दारुणहर्ता !
है अपरिहार्य रौद्र रूप अब, आ भी जाओ संहारकर्ता !!
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हे मौन के देव!
तुम्हारा आवाहन है ।
प्रत्येक प्रकाश में तुम्हारा निवास है ।
हे मौन के देव ! तुम्हारा आवाहन है ।
तुम्हें आत्मसात कर मैं स्वयं के किए ,
कुकर्मों का प्रयाश्चित करना चाहती हूँ ।
तुम पवित्र हो , शोर से दूर
शांत हृदय धारण किए हुए
सभी षड्यंत्रों से दूर ..
तुम्हारा आवाहन है ।
हे देव !
मेरी इंद्रियां अब स्थिर होना चाहती हैं ।
मुझे अपने शय्या पर सुला लो ।
मेरी जिह्वा इस मायावी संसार की
कटुताएं अलापते-अलापते दूषित हो गई है ।
मेरे नेत्र अब और कुकृत्य नहीं देख सकते ।
मेरे कर्ण असहायों की चीत्कार से व्याकुल हो उठे हैं ।
मेरे अधर अपनी सत्यता का प्रमाण
देते-देते निश्चेत् हो चले हैं ।
मेरी नाक अब दूषित वातावरण में
सांस नहीं ले सकती और ..।
हे मौन के देव!
मुझे अपनी अंधकार की चादर ओढ़ा दो ।
मुझे अपने लोक के प्रकाश में जगह दो ।
हे देव ! तुम्हारा आवाहन है ।-
सागर से सागर मिले, न मिले धरा से आसमान।
ये दूरियां हुंकार भरे, कि पराकाष्ठा पाने को,
तू कर दिन रात एक समान।
तू कर ले आज आह्वान।
ध्यान से प्रज्ञान मिले, न मिले आलस्य से ज्ञान।
जब हो मिलन इस मन का तन से,
तो जीवन बन जाए एक तान।
तब गौरव भी करे गुणगान।
तू कर ले आज आह्वान।
अन्त से आखिर अन्त मिले, न मिले मिथ्या से अभिमान।
खामोशी ये चीत्कार भरे, कि पाने को अमरत्व जगत में,
तू कर खुद का ऐसा निर्माण, कि अस्तित्व भी भरे अभिमान।
तू कर ले आज आह्वान।।-
कृपया लोग दें ध्यान
कोरोना पर संज्ञान
भिन्न-भिन्न ये रुप बदलकर
ले रहा मनुज के प्राण
उत्तर पूर्व रचित आह्वान
सूक्ष्म दैत्य को तान
मनुज ही है उत्पत्ति कारक
ग्राउंड ज़ीरो वुहान
श्वसन तंत्र को करता बाधक
ज्वर उत्पन्न करके यह साधक
स्नायु तंत्र को विकृत करता
सुक्ष्म प्रोटीन का यह आराधक
स्पर्श विधि से जन्म अपार
आदान-प्रदान प्रक्रिया भार
मनुज को मनुज का बना के शत्रु
स्वयं का नित करता उद्धार
बचाव ही एक समाधान
न्यू वैरिएंट का बाण
ब्रिटेन में इसने वेश है बदला
आपको है क्या ज्ञान..??-
बागीचे का हरा होना अमृत है,
तालाब का हरा होना विष का अभिप्राय।
मेरे देश के बागीचों को कोई बचा ले
तालाबों को आख़िर कोई तो संभाले-
हाँ कलम लिए बैठा हूँ
एक शब्द नहीं बनता,
बस शून्य पसर रहा है
क्यों शून्य नहीं थमता!
क्या पढ़ने का मौसम है
कि शून्य को हूँ पढ़ता,
नहीं भींगा है मन यह
पर गीले इस मन को
तू चुपके है मथता।
कलम लिए बैठा हूँ
एक शब्द नहीं बनता।-
सीमाओं के अंदर से
सरहद के उस पार तक पलते
षड्यंत्रों के विरुद्ध तंत्र का
आह्वान करतीं पंक्तियां
(अनुशीर्षक में)
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