कोरोना हवा में है,
सरकार हवा में है,
योजनायें हवा में हैं,
पढ़ाई हवा में है,
और,
गर्मियों में हवा तेज चलती है।-
Author: सरकंडे की कलम(https://www.amazon.in/dp/B093DVYRTM?ref=myi_title_dp)
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#आत्महत्या #
इक पतली, मुलायम, सुंदर सी,
रेशमी रस्सी में फंसा,
फ़र्श से कुछ ऊपर मगर,
अर्श से काफी नीचे,
कल की चिंताओं से ग्रस्त ,
आज का हारा हुआ,
गहरा फंसा तिलिस्म में,
जमीं और आसमां के,
एक जिस्म मध्य में लटका था।
शिथिल, शांत,मृत शरीर के संग,
लटके थे कितने प्रश्न अधर में ,
निरुतर, आश्चर्यचकित,अपराधी से,
खुद से खुद में उलझे हुये,
पूछते हुए खुद से खुद के उत्तर,
क्या हम कातिल थे?
या कातिल थी वो जुबां,
जहाँ से हम निकले थे?
#गौरव #
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बढ़ो-बढ़ो रणधीर बढ़ो,
शब्दों के नुकीले तीर लिए,
जीवन नित क्षण महाभारत रण है,
गिरते पग-पग में धड़ है,
बचा नहीं सदेह कोई धर्म-कर्म,
सब सत्ता के शब्द हुए,
अब वंदन प्रेम के नियम नहीं,
अब संख्याएं गिनने का समय नहीं,
इसलिए लड़ो रणधीर अंत तक,
न डिगो, न रुको जीवन रण में।
न ही विचलित हो तुम पीड़ाओं से,
ये चोटें कोई नई नहीं,
शासक,समाज,सत्ता,शोषित,
जो जीवित है सब पीड़ित हैं,
कोई दीन हीन है क्षुधाग्रस्त,
कोई मद मोह दंभ से पीड़ित है।
प्रहरी है खड़े बहुत बाहर,
सुंदर सुभट प्रेम से भरे हुए,
तुम लड़ो भीतरी जंगों को,
नवल प्रेम संचार करो।
#गौरव #
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बरसते है बनकर बूँद बादल,
खाकर थपेड़े वायु के,
बहती है नदियाँ नील निर्मल,
साफ,सुंदर,श्वेत पर्वत ,
की छाती चीरकर,
भरकर हृदय को प्यार से,
औ' सोम से होकर लबालब,
होती है न्यौछावर निरंतर,
प्रयाग सम संगम तटों पर।
क्यूँ चाहते हो फिर मनुज तुम?
एक संग सब सुख ,प्रेम और ऐश्वर्य पाना।
खाकर निरंतर ठोकरें ही,
और घिसकर शिवालिक की सतह पर,
निर्जीव पत्थर है रूप लेते,
पूज्यनीय शिवखंड का।
#गौरव #
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पग पग देते हो साथ सदा तुम,
तय करते हो दिशा धर्म
शिक्षा मंदिर के सदेह ईश्वर को,
मेरा शत शत बार नमन।-
#Jawahar Navodaya Vidyalaya #
नवोदय एक एहसास है,
बस जीते जाने का,
नवोदय एक एहसास है,
बिन पर उड़ जाने का,
नवोदय एक एहसास है,
हकीकत में बदलते सपनों का,
नवोदय एक यकीन है,
सपनों में देखे जाने का,
नवोदय एक प्रेम है ,
दोस्ती को जज़्बात बना लेने का,
नवोदय अक्षुण्ण है,
दुःख, दर्द,द्वेष भावों से,
नवोदय एक प्रमाण है,
अद्भुत ग्रामीण संस्कृति का,
नवोदय एक उज्ज्वलित चिराग है,
विशेष क्षेत्रीयता का,
नवोदय एक घर है,
अपनों को अपनों से मिलने का,
नवोदय एक प्रांगण है,
नवोदित होने का।।
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दिल दिल्ली समझती क्यों नही,
धड़कती है वो रगों के जोर से,
रग, जिसमे बहता है लहू,
बनता है जो पेशानी से,
निचोड़ कर पसीने को।
आखिर दिल्ली झुकती क्यों नहीं,
जानते हुए ये भी की,
बिन झुके गिर जाते है टूटकर,
लंबे,ऊँचे,सख्त दरख्त अक्सर,
हवा के हल्के झोंक से ही,
माना उगते है फिर बीच से मगर,
बँट जाते हैं हिस्सों में अनेक,
और बढ़ते हैं ऐसे ,
जैसे,रेंगता हो घोंघा जमीन पर।
आखिर हर्ज़ क्या है?
झुकने में सामने उनके,
जिसने सिर उठाना सिखाया हो,
सिखाया हो जिसने खाना चलना,
जिसने गर्व से जीना सिखाया हो।
#गौरव #
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#बादल #
ये काल से विक्रांत से,काले घिरे आकाश में,
एक स्याह छाया सी बनाते,रवि के निर्मल प्रकाश में,
हैं अकिंचित,डर न भय है,दिख रही नूतन लहर है,
सत्य ही बदलाव की, इनके विकट हुंकार में।
समय की पुकार से,धरा के उद्धार को,
आ खड़े हों जैसे दुदुंभी की पुकार से।
रात भर चमकती रही ज्वाला चित्कार की,
जैसे हों प्रतीक्षित नव क्रांति के शुरुआत को।
चाँद,तारे दूर भागे, हिरण की सी चाल से,
आ डटी स्वर्णिम प्रभा,प्रातः नभ संसार में।
आ मिले रवि,वायु औ' जलद सभी,
क्रांति के माहौल में,मिलन के इस प्रलाप में,
इक बूँद आ गिरी धरा में,एक नए बदलाव की,
खोल बाहें सुमन ने,बूंद का स्वागत किया,
एक नए अंदाज में।।
#गौरव #
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नवंबर की सर्द रातों में,
बरसती ओस बनकर बूँद,
पत्तों को नमीं से लबरेज करके ,
जड़ों की ओर जा रही है,
जैसे जा रही हो योजना कोई,
जन सामान्य के कल्याण की।1
बड़े पौधे,घनी झाड़ी,गगनचुम्बी तरु सभी,
जी रहे हैं कुछ ओस पीकर,
कुछ जमीं से खींचकर जल।2
सूखती सी दिख रही है घास,
कुछ नमीं और सहूलियत की आस में,
जैसे संस्थाओं की पंक्तियों में,
हो खड़ा कोई छात्र या फिर,
कोई दुखिया मदद की उम्मीद में।।3
#गौरव #
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कुछ कदम बढ़ो चाँद,तुम क्षितिज तरफ,
रात है घनी,मुलाकात मखमली,
साथ जब तलक हो तुम,ये रात है बड़ी,
कुछ कदम बढ़ो चाँद,तुम क्षितिज तरफ।1
ये रोशनी तेरी,छल सी अब लगे,
है नरम बड़ी न नैन को चुभे,
मगर ये तेरी चांदनी,औ' रूप की गमक,
कुरेदती है मिल के दिल के घाव को,
कुछ कदम बढ़ो चाँद,तुम क्षितिज तरफ।2
सूर्य भी बढ़े कुछ गगन तरफ,
नरम पवन चले,सुंदर सुमन खिले,
दिन के दिये जलें, ले दिनकर की लालिमा,
उठ पथिक बढ़े ,गंतव्य की तरफ।
कुछ कदम बढ़ो चाँद,तुम क्षितिज तरफ।।3
#गौरव #
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