रात के अंधेरों में,
अपने जुगनू ले कर चलें।
आसमान के तारों में,
अपने जुगनू ले कर चलें।
महफ़िल में ग़ैरों के,
अपने जुगनू ले कर चलें।
निकलें अनन्त यात्रा पे,
अपने जुगनू ले कर चलें।
बनने को मर्ज़ी का मालिक,
अपने जुगनू ले कर चलें।
निकलें जब भी घर से,
अपने जुगनू ले कर चलें।
-राकेश"साफिर"✍️
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