आती - जाती रहती हैं आवाज़ें हर वक़्त,
और वर्चस्व सन्नाटे का ख़त्म नहीं होता।-
तुमसे जिया, तुम पे ही मिटा
मेरी ये साँसे, तुम्हीं तक थी
तू ने भुलाया, जो मुझको ऐसे
ये जिंदगी भी, यहीं तक थी
तेरी , मुझको है कमी
तेरे बिन, है आंखों में नमी
महसूस तुझे, हर पल करता
तेरी यादों में, जीता मरता
अब और सहा, नहीं जाता है
बिन तेरे रहा, नहीं जाता है
इक बार, मैं मिलने आऊंगा
औ मिलकर तुमसे जाऊंगा
जिस ओर चलूँ , जिस ओर मुड़ूँ
बस तेरी ही, आवाज़ सुनूँ
कहता है हरपल, दिल मेरा
मैं प्यार तुझे, दिन-रात करूँ
मेरी जाती हैं, तुम तक राहें
तू चाहे मुझे, या ना चाहे
मैं फिर भी, मिलने आऊंगा
औ मिलकर तुमसे जाऊंगा-
भला इससे ज्यादा
क्या खुशनसीबी हो सकती है की
बिना हालचाल पूछे ही कोई
सिर्फ आपकी आवाज से ही
आपका हालचाल जान ले !-
कभी अज़ान है तुम्हारी आवाज़
तो कभी लोरी सी लगती है,
मुझे रातों को सुला देती है
मुझे जरूरी सी लगती है ।
सुकून मिलता है सांसों को
जैसे खुशियों का अंबार लगा हो,
तरसते कानों का संगीत है
जिंदगी पूरी सी लगती है ।
खुद की लिखी ग़ज़लों को
तुम्हारे अंदाज़ में पढ़ता हूं,
मेरी आदते मेरी नहीं
तुम्हारी सी लगती है ।
जो कभी तुमसे बात न हो मेरी
तो दिल बेचैन हो जाता है,
धड़कने तेज हो जाती है
बाते डरी सी लगती है ।
साहिल को कोई हसरत नहीं
तुम और तुम्हारी यादें काफी है,
ख्वाहिशों में कोई हुर नहीं
सादगी ही परी सी लगती है ।-
लिखना चाहूं कुछ ऐसा कि लोगों की आवाज बन सकूं
लिखना चाहूं कुछ ऐसा कि नव परिवर्तन का आगाज बन सकूं
लिखना चाहूं कुछ ऐसा कि जड़ में भी चेतन ला सकूं
लिखना चाहूं कुछ ऐसा कि जग में परिवर्तन ला सकूं
लिखना चाहूं कुछ ऐसा कि उदासों की मुस्कान बन सकूं
लिखना चाहूं कुछ ऐसा कि विचलितों की आन बन सकूं
दे कलम तू ताकत इतनी कि मैं सच लिख सकूं
बना दे मुझको काबिल इतना कि मैं आईना दिख सकूं
गर हो गलत कुछ तो मैं उसका प्रतिकार कर सकूं
लिखना चाहूं कुछ ऐसा कि लोगों की आवाज बन सकूं
लिखना चाहूं कुछ ऐसा....-
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है।।
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है।।
वसीम बरेलवी-
***आवाज़***
सिमट के बैठ गयी कोने में किसी,
आवाज़ उसकी बेधड़ले से।
मिट गयी हो जैसे,
घड़ी की टन टन अंकों से।
न शिक्वा का अवसर मिला,
न गले लगाने का।
ऐ आवाज़ के कातिल,
क्यों बना डाला उनको
-एक ही नाव के दो मुसाफिर।
@वृंदाश्री...
-
मैं आवाज़ नहीं दूंगा तो वो रुकेगा ही नहीं
उस-सा इश्क इस जहां में कोई करेगा ही नहीं।-
आज कर लेे हिन्दुस्तानी होने का अभिमान
कल तक सच्चाई जाएगा तू जान
तेरे अन्दर का हिन्दुस्तानी जो जिंदा है
क्या तेरा खून नहीं खौलता है
तू क्यों विदेशी संस्कृति अपना रहा है
क्यों भगवान को god बुला रहा है
क्या वाकई रामायण महाभारत से
पहचान तेरी अब तक हुई
क्या वेदों को तूने जाना है
यदि सच में दिल से हिंदुस्तान को अपना माना है
सरहद पर कितने सिपाही
सर्दी गर्मी सब सहते है
तब जाकर हम चैन से सोते है
फिर भी शिकायते लाखों हमें देश से है
अपने प्रधान मंत्री के भगवा वेश से है
क्यों एक दिन में इंडिया का नक्शा बदल नहीं देते
अरे साहेब पहले आप खुद क्यों नहीं सुधरते-
आवाज़ ही सुन कर भांप लो मेरी हालत
हर बार चेहरा देखने की ही जरूरत नही होती है-