हाय ये मौसम भी हमे कितना सताता है।
पसीना माथे से टपकता हुआ मुंह धुलाता है।
मैं उस बाग में घूमने भी अब नही जाता।
सूखे पत्तों का वहा सैलाब नज़र आता है।।
बहुत उदास सी है वो कोपल जो फूटी है उस गमले में।
चमकती धूप से उसका रंग उड़ा जाता है।
वो पन्ना जो हर डायरी का सबसे भरा रहता है।
हर बार पलटता हूं आखिर में ही क्यों आता है।।
कुछ साइन दो आंखे और शेर लिखे हैं उस पर।
है तो मेरी पर नाम तुम्हारा भी नज़र आता है।।
हर बार करते हैं वो वादा जल्द मिलने का।
वक्त इसी एतबार में हमारा गुज़र जाता है।।
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