अमृत भूमि प्रयागराज जन चेतन आध्यात्मिक का संगम,
छलका अमृत, हुआ देवत्व, हुआ तब यह दुर्लभ संगम।
देश विदेश में हुआ चर्चित, खींचे चले आए जैसे चुंबक
उमड़ पड़ा अथाह जन सैलाब मनभावन दृश्य विहंगम।
रज पद स्पंदन सनातन गौरव स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश,
आस्था की डुबकी, तन मन प्रफुल्लित, आत्मिक जंगम।
पुण्य सलिला तीर पर, यज्ञ अनुष्ठान की प्रज्वलित लौ,
जैसे देव स्वर्ग से अनुभूदित हर क्षण आशीर्वाद हृदयंगम।
वैचारिक नैतिक सात्विक से ओतप्रोत सर्वस्व सर्वत्र ओर,
जो बने हिस्सा भाग्यशाली, आधि व्याधि तज हुए सुहंगम।
हर एक के जीवन में होता यह प्रथम और अंतिम अवसर,
जीवन सुफल, दुःख दर्द निष्फल, जैसे यह मोक्ष आरंगम।
आत्मशुद्धि, वैचारिक मन मंथन का सुव्यस्थित आश्रय,
नश्वर तन का अटल अंतिम सत्य, यही संगम यही मोक्षम
सदियों से बना यह अति उत्तम दुर्लभ खगोलीय संयोग,
बहुचर्चित, दिव्य, अलौकिक इस महाकुंभ का शुभारंभ।
_राज सोनी-
जब अँखियाँ ख़्वाब सजाती हैं
तुझे सोच-सोच मुस्काती हैं
हर शय इस दिल को भाती हैं
जब दिल में गुंजन होता है
तब कविता सृजन होता है
पावस ऋतु जब आती है
संग रिमझिम बरखा लाती है
ठंडी सी पुरवा हर्षाती है
शब्दों में नेह बरसता है
तब कविता सृजन होता है
जब भक्ति मन में आती है
लौ उस रब से लग जाती है
भौतिकता फिर न लुभाती है
शब्दों से आचमन होता है
तब कविता सृजन होता है
-
आचमन तुल्य पुनः पुनः हुआ नदियों का जल
जल क्रीड़ा कर रही नदियाँ निर्मली कल कल
प्रकृतिप्रदत्त प्राणियों को मिला पुनर्वास बल
अजेय-मनुष्य छिप गया देखो कायर निर्बल
कोई औषधि नहीं यहाँ है न ही है कोई-हल
संपूर्ण विश्व है हाहाकार देखो ये कोलाहल-
आँसुओं से न हम आचमन कर सकें,
नाहीं मन की विकलता शमन कर सकें ।
हम महादेव जैसे रहे प्रेम में
ना गरल पी सकें ना वमन कर सकें ।।-
शराब की बोतल बना दिया, मगर गंगा का आचमन है लड़कियां
प्यार में सनम तो कह दिया, असल में वंदे मातरम है लड़कियां-
राह में चलते चलते मेरे चाँद से मुलाक़ात हुई,
दूधिया पूरा ये बदन हो गया
घनघोर बरसात हुई,कौन भीगा पता नहीं,
बस अधरों का आचमन हो गया
-
चमन से चले थे आचमन करके कि
तुझसे मिलना भी एक खुदाई है
रोऊँ क्यों तुझसे बिछड़ करके कि
कितनी पाक अपनी जुदाई है।
-
प्रतिदिनकी होती रहे राम-राम,,,
सम्बन्धो का बनाये रखे हम मान,,,
निष्ठा का सदैव करे हम आचमन,,,
मन-हृदय बना रहे निर्मल-पावन,,,
जय-गोपाल,,, ऊँ-शिव,,,-
खुशबुओं से तुम्हे जान लूँगा प्रिये,
बन्द आजमा के मेरे नयन देख लो।
इससे प्यारी छवि तो मिलेगी नही,
आज दर्पण नहीं मेरा मन देख लो।।
अब बताऊं अधिक क्या विस्तार में,
वो तो खोयी रही प्यार ही प्यार में।
शब्द बहने लगे गीत की धार में,
प्रीत ने जब किया आचमन देख लो।
गांठ में बांधने का था वादा मगर,
बंध गये हम तो सांसों की ही डोर में।
सारा संगीत जीवन का तुम से ही है।
हाथ रखकर कभी धड़कन देख लो।।
-