कहने को दिन पुराने हैं,
अब गुजरे हुए ज़माने है।
हम लोगों का ऑफिस था,
प्रेम,मैत्री,विश्वास मगर था।
सबकी अपनी जिम्मेदारी थी।
उतनी ही पक्की साझेदारी थी।
कितनी दूर निकल आए सब,
कुछ तो बस यादों में हैं अब।
पर फिर से एक ठाँव मिली है।
शाम नहीं ये सुबह खिली है।।
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कहने को दिन पुराने हैं,
गुजरे हुए ज़माने है।
हम लोगों का ऑफिस था,
प्रेम,मैत्री,विश्वास मगर था।
सबकी अपनी जिम्मेदारी थी।
पर पक्की साझेदारी थी।
कितनी दूर निकल आए सब,
कुछ तो खोकर याद आएं अब।
पर फिर से एक छांव मिली है।
शाम नहीं ये सुबह खिली है।।
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ज्ञान का दीपक नाम बनी देहरी।
भीतर बाहर दोनों ओर उजाला है।
राम जिन्हें जप कर दुनिया संभल गई। किंतु वो भी कहें उन्हें गुरु ने संभाला है।।
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ज्ञान का दीपक अनाम रही देहरी।
भीतर बाहर दोनों ओर उजाला है। राम नाम जप कर दुनिया संभल गई। किंतु वो कहें उन्हें गुरु ने संभाला है।।
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कीमत पर बाजार बसा है।
मंचों पर अब यही सजा है।
पीर बहुत है गीत सृजन में।
दर्द का अपना एक मजा है।।-
जब से किस्मत संवारने लगे।
जीती बाजी भी हारने लगे।।
हार का ये भी तो मतलब नहीं।
बैठ कर सिक्का उछालने लगे।।-
ना सुख लचीला,दुख सख्त नहीं।
जिंदगी में कुछ भी बेवक्त नहीं।
उन्हें भी ज़रा जड़ों से जोड़ो,जो।
छांव चाहे हैं,मगर दरख़्त नहीं।।
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सबसे पहले निगाहों का मिलना हुआ।
फिर एक पल वहीं पर ठहरना हुआ ।
चांद से मिलती है सूरत मेरे प्यार की,
बेसबब यूं नहीं दीदार करना हुआ।।-
नारायणी हो तुम सृष्टि के लिए।
शारदा हो दिव्य दृष्टि के लिए।
अम्बा आदि जगदम्बा स्वयं में।
शक्ति हो आप समष्टि के लिए।।
उन सब चरणों की सेवा पूजा मैं,इन रूपों में कर पाया।
पांव पखारे बेटी के जिसने,वो भाग्य है धन्य कर पाया।
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कुंठित कुटिल कल्पनाओं का ना हो प्रभाव।
वीणापाणि ऐसा हमको स्वरूप दीजिए।
कवि की कलम कमजोर होना जाए कहीं।
शारदे मां कविता को आज प्राण दीजिए।
कंचन या कामिनी की कामना करें कभी ना।
ऐसा भक्ति रूप व्यक्ति व्यक्ति को मां दीजिए।
जिनका ना देश का तनिक भी हो मान ध्यान।
किंचित ना ऐसे हाथ राष्ट्र जाने दीजिए।।-