मैं शायद तुम्हारी किताब का अधूरा पन्ना थी,
तुम मेरी मुक़म्मल कहानी थे....
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क्यूँ इतने उसूल बना रखे तुमने मुहब्बत में ,
कि,वो भी अधूरें इश्क़ की ख्वाहिश करती है।।-
मैं सरल लिखना चाहती हूं
ताकि सब समझ सकें
.
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सब समझते हैं
मैं सरल हूं-
स्त्री
तुम न पूरी तरह से लिखी जा सकती हो
न पढ़ी जा सकती हो
न ही समझी जा सकती हो।
ये अधूरापन ही
बनाता है तुम्हें
स्त्री पूर्णतः।-
मुझे महसूस है हर आह तुम्हारी
तुम्हे गहरे घाव भी दिखते नहीं
कैसे निभेगी अपनी यारा,
हमदम के सिवा इश्क़ के मरहम बिकते नहीं
मैं आखिरी चिराग रोशन घने अँधेरे का
तु भूखी हवा से ज्यादा कुछ भी नहीं।-
किसी को क्या बतायें, किधर ये कदम निकल पड़ता है ।
जब भी याद आती है उनकी, ये पागल मचल पड़ता है ।
बहुत शोर मचाता रहता है ये दिल, यूँ धड़क धड़क कर
कोई समझाओ इसे कि, उनकी याद में खलल पड़ता है।।
इस उलझी हुई दास्तां को, कुछ यूँ सरल करते हैं।
बंजर पड़ी इस जमीं पे, अब कुछ फसल करते हैं।
कहीं छूट गयी थी अधूरी, जिंदगी की भागदौड़ में
आओ साथ मिलकर, मुकम्मल वो ग़ज़ल करते हैं।-
अब दूरियों को क्या समझाऊं
कि कितनी ख्वाहिशें हमारे दर्मिया अभी बाक़ी हैं |
नाराज़ तो वो हैं मुझसे
पर उसका प्यार ही मेरे अकेलेपन का साथी हैं |
एक ज़ख़्म दिया हैं उसने मुझे
अपनी यादों की तरह ,
पर उस पगली को क्या पता
कि जीने के लिए उसके साथ बिताए प्यार के कुछ पल ही ,
ज़िन्दगी भर मेरे लिए काफ़ी हैं |-
खुद में समा सकूँ जिसको
वो अक्स कहाँ ढूंढू
मेरे बिन वो भी अधूरा हो
वो शख्स कहाँ ढूंढू-
ऐसा रिश्ता है मानो जैसे
आँखे और आँसू
दीया और बाती ।।
जाने कैसी दास्ताँ है इनकी
जो पूरे हो के भी अधूरे है
एक दूसरे के बिन ।।
मुक्कमल हो जाता है जहांन
इनका करते है जब कुछ
अनकही सी गुफ्तगू ।।-
☹️
अधूरा सा महसूस होता है मुझे ,
तेरा रात के पलों में बिछड़े रहना।-