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हम अग्निपथ पर चल पड़े हैं
पेंशन मिलेगी न मिलेगी प्रश्न अंतर्मन में खड़ें हैं
शहीद होंगे हम अगर तनिक भी हमको भय नहीं
न हो जाएं अग्निवीर छंटनी असमंजस में पड़ें हैं-
देशभक्ति का प्रमाण इन्हें, ऐसा अनचाहा परिवार न दो।
अग्निवीर के नाम लुभावने, निहित वर्ष यह चार न दो।।
दिल्ली बैठी खिल्ली उड़ाने, हर जवान के चाहत पर।
राहत खातिर मृगमरीचिका, वाले यह रोजगार न दो।।
कहते हो गर इसे मुनासिब, तो यह भी एक काम करो।
हर नेता हर अभिनेता के, पूत भी इनके नाम करो।।
या फिर रोक दो इनकी भत्ता, निस्वार्थ सेवा ही हो जाये।
अग्निवीर के शुभचिंतक यह, कर्मवीर भी कहलाये।।-
# 23-06-2022 # गुड मार्निंग # काव्य कुसुम # # अग्निवीर # प्रतिदिन प्रातः काल 06 बजे #
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अग्निवीर बनने के लिए तो तपना भी होता है।
अग्निवीर बनना जीवन का सपना भी होता है।
सपना सच करने को अग्निपथ अंगीकार करिए-
अग्निवीर संकट में देश का अपना भी होता है।
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धरा उठा, गगन झुका
ठहरी नदी, पवन रुका
सूर्य सा दमक रहा
तू चाँद सा चमक रहा
तू आग है, तू आग है
आज वक्त को दिखा
भविष्य तूने ही लिखा
चमकता है सितारा तू
तू ही है अग्निशिखा
तू आग है, तू आग है
सीमा पर अब लड़ेगा तू
हिमालय पर चढ़ेगा तू
कोई तुझे न रोकेगा
कदम कदम बढ़ेगा तू
तू आग है, तू आग है
देश से जुड़ेगा तू
सेवा की ओर मुड़ेगा तू
ये आसमाँ है तेरा ही
अब यहाँ उड़ेगा तू
तू आग है, तू आग है-
कुछ यू चल रहा है सिलसिला मंजिल पाने का
जगह भी नहीं हैं उतनी....।
फिर भी कारवा खड़ा हो रहा है,
नौकरियां हथियाने का ।।
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सूर्योदय से पूर्व जागा करते थे,
जो हर कदम जुनून से भागा करते थे,
मात-पिता का गौरव बढ़ाने,जो चले थे फौज की वर्दी अपनाने,
तुम बात तो जोश की किया करते थे ना?प्रत्येक क्षण हिम्मत से
जिया करते थे ना...?
ये कायरता वाला ख्याल केसे आया....?
इतनी आसानी से आत्महत्या को कैसे गले लगाया....? माना तुम निडर थे मौत से डरे नही, पर कुछ जो तुम सोच जाते मौत
को युं न गले लगाते..!
तुम्हें अभी बहुुत कुछ कर दिखाना था...देशका स्वाभिमान बढ़ाना
था,मातृभूमि का ऋण चुकाना था,सरकार को हिलाना था..
तुम्हें मौत को यु चार दीवारी में न गले लगाना था,
बेकसूर परिवार को इस कदर बिलखता न छोड़
जाना था....
तुम्हें अपना फर्ज निभाना था!-
--: अग्निवीर हुए अधीर :
सरकारी संपत्तियाँ जला रहे राष्ट्र की रक्षा करोगे ख़ाक तुम !
रेल की गति रोककर तुम खुश हुए कर दिये खुद-औरों को बर्बाद तुम।
उम्र बीतेगी तुम्हारी इसी तरह अपने घर को ही करोगे राख़ तुम,
आन्दोलन-संस्कृतियाँ समझे नहीं क्या सुनाओगे अपनी आवाज़ तुम !
भारत के भविष्य खुद को मानते शांतिपूर्वक भेजते संवाद तुम,
मगर बहकावे में ठहरे इस कदर आग की आगोश में आबाद तुम ।
राष्ट्र की मुख्यधारा से गर कट गये। जाओगे किस ओर बोलो आज तुम,
तुमको इस्तेमाल किसी ने कर लिया क्या किया था उससे अपनी मांग तुम?
भीड़ में दुश्मन तुम्हारे साथ थे सुर में सुर मिलाकर हुए बर्बाद तुम,
मैं कहूँगा क्या, कहोगे खुद कभी हो गये षडयंत्र का शिकार तुम ।-