देवस्या 💖 Devsya   (Devsya)
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#देवस्या #devsya
Under construction..........💖
Joined 22 October 2020


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मन मंदिर में मेरे मूरत बनकर तुम्ही रहते हो,
प्रेम अश्रु को मेरे दृग के गंगा तुम्ही कहते हो ।
भाव मेरे तुझको ढूंढें, हर छवि बिसरी है मैंने,
ख़ुद में भी तेरी सूरत, हर पल निहारी है मैने।।
हृदय धरा पर मेरे सागर बनकर तुम्ही रहते हो,
प्रेम अश्रु को मेरे दृग के गंगा तुम्ही कहते हो।।

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नकाब उनके हज़ार हैं और
सवाल हम पर उठा रहे हैं,
छिपाकर ख़ुद की गलतियां
वो खामी मेरी गिना रहे हैं।
मैं ग़लत हूं या कि सही
तुम ये सवाल छोड़ दो,
हित सभी का देखने की
तय जवाबी तुम ख़ुद करो।
सुनते हो तुम अपनी अगर तो
ग़ैरों के साथ क्यों हो खड़े?
जो हित अपना साधते हैं
उनकी बातों में आना छोड़ दो।
हो सही तो साथ दो तुम -2
उनका जो तुमको चाहते हैं,
ना पसंद हैं वो लोग मुझको
जो झूठ से सच पटाते हैं।।
ये संस्था अपनी है लेकिन
हम लोग इसको बांटते हैं,
वो छेदते हैं घर की थाली,
जा ग़ैरों के तलवे चाटते हैं।
है संस्था अपनी अगर तो
क्यों लोग इसको बांटते हैं?

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मैं
नही लिखती
तुम्हे
पर,
तुम मुझे
पढ़ते बहुत हो।

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अजी परतें हैं परतों के नीचे
चलती दुनिया आँखें मिचे।

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दास्तां-ए-इश्क बयां करने लगी जब ये ज़मीं
बादलों में सिमट कर छिप गया वो आसमां ।

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वो हज़ार बार
तोड़ी गईं
और
जरूरतों पर
जोड़ी गईं
तो कहती हूंँ
कि हांँ
शिलाएं पूजी जाती हैं,
संवेदनाएं नहीं...।

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जुस्तजू है ये अगर कि जीत ही अंजाम हो,
ख़्वाहिशों के नाम फिर तो उम्र ये तमाम हो।

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