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Joined 10 June 2018


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आज कमरे की सफ़ाई करते वक़्त मिली
तुम्हारी दी हुई अनमोल क़िताब
पन्नों को बस पलटते पलटते
खो गया तुम्हारी यादों में
और पाया गेंदा फ़ूल
बाल का टुकड़ा
दिल में लिखा
तेरे मेरे नाम का संकेत

पोछा लगा के कामवाली ने
एकाएक चलाया पंखा
हवा के झोंखें से उड़े
पन्ने, वो बाल और
गेंदे की पंखुड़ीयां

कुछ महीनों के बाद मैं अवाक
देख गमलों में गेंदें के फूल
खो गया फिर से यादों में
एवं रख दिया एक गेंदा
फिर से उसी पन्ने में

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हम जैसे तुम दूर हमसे
लूट गए हैं घुट रहे हैं दूर तुम हुए हो जबसे

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हमारी है काली रात ने
हमारे अरमानों को लूटा हमारे ही ज़ज्बात ने

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हर दिन का अपना इतिहास है
हम पर निर्भर है हमारा नसीब
आम रहना या बनाना खास है

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में दौड़ते दौड़ते जब भी थक जाइये
दो पल रुक सांस लेके इत्मीनान से हंसिए मुस्कुराइए
ये निरंतर भागदौड़ ज़िंदगी की हो सकती है जानलेवा
अब भी वक़्त है संतुलन रखिए स्वास्थ्य को अपनाइए

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पश्चाताप

सत्य अहिंसा इंसाफ़ करम संस्कार से तूने पाला था
घर से निकला पाया माँ ये संसार ही पूरा काला था

ईमान धरम नीयत निष्ठा केवल कहने की बातें थी
करवट बदल बदल कर ओ माँ कटती मेरी रातें थी

मेरे हाथों की कालिख़ अब मेरे सारे पाप गिनाती हैं
जला समझ कर जिनपे तू रो रो के मरहम लगाती है

बहुत थक गया हूँ मेरी माँ गोद में चैन से सोने दे
पश्चाताप के आंसू से माँ आँचल तेरी भिगोने दे

बहुत बदल गया हूँ मैं माँ तुमको बिल्कुल पता नहीं है
दुनियाँ से मत लड़ना ए माँ कह के मेरी खता नहीं हैं

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गुमान

इंसान तो इंसान है, हर ग़म से परेशान होगा
जवां खून तो गर्म है, और भी नादान होगा

मासूमों को बहकाना काम बड़ा आसान होगा
आग में घी देना सियासतदानों का काम होगा

जो मंदिर मस्जिद जात धर्म पे घमासान होगा
न किसानों को दाम न जवानों को काम होगा

चिंता बेसब्री बढ़ेगी गुस्सा सर-ए-आम होगा
कहीं शहर जलेंगे कहीं क़त्ल-ए-आम होगा

मुट्ठी में आसमान है हर शाह को गुमान होगा
मुट्ठी भर ख़ाक ही हर शख्श का अंजाम होगा

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खिल गए

हक़ मांगते किसानों को
शाहों के जीप कुचल गए
पदक वाली बेटियों को
वहशी दरिंदे निगल गए

जो डर गए झुक गए
संघर्ष से निकल गए
गुनाह उनके धुल गए
हुक़ूमत से जो मिल गए

जो तने रहे खड़े रहे
डरे नहीं अड़े रहे
वो भारत की माटी के पूत
सूरज की भांति खिल गए

टूटे नहीं झुके नहीं
चाहे क़ैद में पड़े रहे
देख माँ भारती के सपूत
तानाशाहों के दिल दहल गए

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हक़ीक़त

कटु सत्य जो जो कहे, पीछे पड़े हैं लोग
देश की हक़ीक़त मगर झुठलाएंगे कैसे?

हुकूमत की ग़लती से इत्तेफ़ाक़ न रखते
वर्ना आईने को सूरत दिखलाएँगे कैसे?

मग़रूर हुक्मरां कितने आये चले गए
वक़्त के दस्तूर को बदल पाएंगे कैसे?

लेनिन हिटलर माओ स्तालिन को करो याद
तानाशाहों की गिनती में वो न आएंगे कैसे?

हमको सता सकते हैं, मिटा सकते हैं ज़ालिम
रग रग में हिंदुस्तान है, उसे मिटा पाएंगे कैसे?

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कोई मन की बात करे कोई रात से संवाद
हक़ मांगे जब भी कोई बढ़ता वाद विवाद

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