रात के अंधेरे में,मन के उजाले से दूर तलक
रात के हर अंधेरे पहलू में जुगनू कि तरह
कोई हो या ना हो साथ हम खुदके क़रीब होते हैं
ये गुमनामी के अंधेरे हसीन बड़े होते है
खुद से ही रूठ जाते हैं ख़ुद को ही मना लेते हैं
कभी दिन में सोते हैं कभी रातो को जाग लेते हैं
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