लड़ता रहा उम्र भर कभी खुद से कभी दूसरों से
लड़ाई खुद से की की दूसरों से जीत जाऊ।
जीतता गया जीतता गया, हार के बहुत कुछ
जाना था दूर बहुत, बहुत दूर गया।
अब और लड़ने की हिम्मत नहीं है
कब तक लड़ूं जब हारना किस्मत में ही है।
लड़ता भी तब है आदमी जब कोई उम्मीद हो
अब तो बची कोई उम्मीद भी नहीं है।
किस लिए लड़ूं, किसके लिए लड़ूं
किस किस से लड़ूं और कब तक लड़ूं।
लड़ना ही अगर जिंदगी है तो ये कैसी जिंदगी है
इससे अच्छी तो मौत ही भली है।-
अब इश्क की तन्हा रातें मेरे घर से होके है गुजरती
वो तो अब भी मरती है अब बस मुझपे नहीं मरती।-
ले लो जो लेना है मुझसे
अब बस मैं ही बचा हूं
गर बचा सकते हो तो
बचा लो मुझे खुद से।-
न जीने की आस, न अब बचा कोई पास
न कुछ करने की चाह, न दिखती कोई राह
न कुछ पाने का जुनून, न कुछ खोने का गम
मरने की आस में बस यूंही रोज जीए जा रहे है हम।-
वो चार महीने से मेरे दिल से खेल रही है
और कहती है चार दिन से मेरे एग्जाम्स चल रहे है
और मेरा क्या जो चार साल से तेरे लिए
बिन धुआं मेरी जान जल रही है।-
गम में नम किए आंखे हम रोते रहे रात भर
देख कर दुख का अंबार सोचा करेंगे प्रभु बेड़ा पार
शैतान जो घर में छिपा था भेजा जिसको गया था
देखता रहा चुपचाप सब मेरी बर्बादी का तमाशा
जब देखा कि कोई मदद नहीं आई कही से
उठा खुद वो शैतान आया मेरी तरफ खुद की खुशी से
बोला गले लगा कर देख लूंगा मैं अब सबको
तू अब निश्चिंत रह, अब तू चिंता मत कर।
किया जिस जिस ने तुझे बर्बाद करूंगा खत्म चुन चुन कर
ऐसा तड़पाऊंगा रोएंगे मौत की भीख मांगेंगे
न तरस खाऊंगा खा जाऊंगा हर खुशी वही पर।
तू मत डर, तड़पा बहुत तू देखा मैने अब बस कर
अब और नहीं रोने दूंगा, दूंगा ऐसी जिंदगी
अब न उन्हें मिलेगा दिन में चैन न रात भर सोने दूंगा।
अब देख कैसे खेल खेलता हूं
जिसने तुझे पेला उसे कैसे पेलता हूं।
हैरान था मै ये सब देख कर
शैतान को ये सब कहते मेरे बगल में लेट कर।
गले लगाया उसने बाहों में उठाया उसने
बोला अब जा सो जा अब एक बूंद न बहाना
अब दुश्मनों की बर्बादी का जश्न मनाना
आयेगा वक्त अब तेरा, बर्बाद रातों के बाद सुनहरा सवेरा।
ये कह के शैतान गायब हुआ,
मैं सपने में था या हक़ीक़त में न समझ पाया।
देखा तो खुद को अकेला कमरे में रोता पाया
अगले ही पल खबर दुश्मनों की बर्बादी का मैने पाया
ये हकीकत था या सपना मैं कुछ भी न समझ पाया।-
ये हुस्न ये अदाएं मर्दों के जीने की उम्मीद है
जो ये भी न मिले तो फिर इंसान नाउम्मीद है।
इन्हीं के सहारे, इन्हीं के बहाने मर्द जिंदा है
ये भी अब नखरे वाले निकले तो मर्द क्यों जिंदा है।
ये दुख के पहाड़ मर्द झेलता है कि घर में प्यार मिले
जब वो भी न मिले तो लगे भूकंप से संसार हिले।-
Don't mourn for those who left; pray for those who didn't, for this is hell.
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