Happy Teachers Day to All
गुरु गोविंद दोऊं खड़े काके लागूं पाएं।
बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताएं ।।
कबीर के इस दोहे को विद्वानों ने अपने अपने तरीके से व्याख्या करने की कोशिश की है,परन्तु कबीर जिस काल से सम्बन्ध रखते हैं,उस काल, उस धारा को कभी भी ध्यान में नहीं रखा गया। कबीर प्रेम और भक्ति धारा के कवि हैं। इस दोहे में शिष्य दुविधा में है कि पहले वो किसके पैर छुए गुरु के या ईश्वर के:असल में कबीर कहना चाहते हैं कि अगर गुरु और गोविंद दो दिखाई पड़ रहे हैं तो तुम्हें अभी और ज्ञान की आवश्यकता है, वास्तव में ये प्रश्न ही गलत है ,और जिस दिन तुम्हारी ये दुविधा ये प्रश्न गिर जाएगा,उस दिन न गुरु बचेगा और न गोविंद और न ही शिष्य ...बचेगा तो सिर्फ शून्य...यही भक्ति है यही प्रेम है...जहां न प्रेमी है न प्रेयसी कुछ है तो सिर्फ प्रेम..जहां न ईश्वर है न भक्त..शेष है तो सिर्फ भक्ति...जहां न गुरु है न शिष्य... है तो सिर्फ एक रिक्तता...
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Lecturer in English.
Desire to be shine as a poet.
Aspire to be a dream of many.